राज्यसभा उपसभापति पद चुनाव में बीजेपी को मिली जीत के कुछ सियासी मायने निकाले गए। हांलाकि बीजेपी की जीत आसान तो कत्तई नहीं थी, लेकिन इसके लिए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह काफी समय से ग्राउंड वर्क कर रहे थे।

यह सोचने वाली बात है कि जेडीयू और बीजेपी के संबंधों पर प्रश्नचिन्ह उठाने वाले मूक खड़े नजर आ रहे हैं। इस बार उन्होंने इस बात को पूरी तरह से खारिज कर दिया। यह मामला साफ हो चुका है कि लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी के असली ट्रंप कार्ड होंगे। अगर एनडीए गठबंधन को कुछ सीटें कम भी मिली तो नीतीश कुमार पीएम मोदी के लिए बेहतरीन फील्डिंग का नजारा पेश कर सकते हैं।

दूसरी बात यह है कि पिछले कुछ महीनों से शिवसेना ने बीजेपी के विरूद्ध बिगुल बजा रखा था, लेकिन इस चुनाव से स्पष्ट हो चुका है कि इन दोनों पार्टियों में चाहे कितना ही वैचारिक मतभेद क्यों ना हो लेकिन शिवसेना कभी भी बीजेपी का साथ नहीं छोड़ सकती है। इतना ही नहीं ओडिशा के नए क्षत्रप नवीन पटनायक भी अंत में बीजेपी के पाले में खड़े नजर आए।

अभी यह देखना बाकी है कि नवीन पटनायक लोकसभा चुनाव-2019 के आखिर तक बीजेपी के साथ खड़े रहते हैं अथवा नहीं। अगर ऐसा संभव हुआ तो बीजेपी को एक काबिल साथी मिल जाएगा। इस चुनाव से कांग्रेस का भी रूख साफ हुआ है। कांग्रेस के साथ सपा, बसपा तथा ममता दीदी की टीएमसी साथ खड़ी नजर आई।

दोस्तों, आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव-2019 से पहले बीजेपी और कांग्रेस को अपने दुश्मनों और दोस्तों की सूची बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ी, क्योंकि राज्यसभा उपसभापति पद के चुनाव ने यह मामला पूरी तरह से साफ कर दिया है। अब देखना यह होगा कि कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियां नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भाजपा को मात देने में किस हद तक कामयाब होती हैं।

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