24 मार्च 2005 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित खबर के अनुसार, यूपी आईएएस एसोसिएशन ने साल 1996 में एक सर्वेक्षण किया था, जिसमें राज्य के सबसे भ्रष्ट अधिकारियों में अखंड प्रताप सिंह को पहले पायदान पर रखा गया था। वर्ष 2008 में प्रदेश के मुख्य सचिव रहे अखंड प्रताप सिंह को आय से अधिक संपत्ति मामले में जेल की हवा खानी पड़ी थी।

अखंड प्रताप सिंह के सेवानिवृत्त होने के बाद सीबीआई ने जांच में पाया कि उनकी संपत्ति आय के स्रोतों से कहीं बहुत अधिक थी। इस सेवानिवृत्त अधिकारी के पास 13 वाहन, लखनऊ के नजदीक एक फ़ॉर्म हाउस, चार अन्य घर, चार प्लॉट, गुड़गाँव में चार फ़्लैट, 82 लाख रूपए की नकदी तथा एक विशाल हवेली भी शामिल थी। इस स्टोरी में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि यूपी राज्य सरकार में कितना रूतबा था।

  • दोस्तों, आपको बता दें कि जब अखंड प्रताप सिंह के संपत्ति के जांच की मांग उठी थी, तब तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह ने इस मांग को ठुकरा दिया था।

  • केंद्र सरकार ने जब इस अधिकारी के जांच की मांग राज्य सरकार से मांगी तब तत्कालीन राजनाथ सिंह सरकार ने भी इसे अस्वीकृत कर दिया था।

  • मायावती सरकार में तो जैसे अखंड प्रताप सिंह की तूती बोलती थी। तत्कालीन मायावती सरकार में सीबीआई जांच की मांग ठुकराने के अलावा विजिलेंस से जुड़े मामले भी वापस ले लिए गए।

पूर्व आईएएस अधिकारी प्रोमिला शंकर द्वारा लिखित किताब के अनुसार, तत्कालीन मायावती सरकार में अखंड प्रताप सिंह ऐसे व्यवहार करते थे, जैसे वह खुद ही सीएम हों। अब आप उपरोक्त बातों से अंदाजा लगा सकते हैं कि अखंड प्रताप सिंह का यूपी की अलग-अलग राज्य सरकारों में भी कितना रूतबा था।

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