इसमें कोई दो राय नहीं कि आधुनिक भारत के निर्माता पंडित जवाहरलाल नेहरू का सियासी कद इतना बड़ा था कि देश का कोई भी राजनेता जल्दी उनके सामने बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था। लेकिन डॉ. राम मनोहर लोहिया ही हिंदुस्तान के एकमात्र राजनेता थे, जिन्होंने पंडित नेहरू की नीतियों को सियासी चुनौती देने का काम किया।

लोकसभा चुनाव 1962 में डॉ. राम मनोहर लोहिया ने जहां-जहां पंडित नेहरू के खिलाफ प्रचार किया था, वहां-वहां नेहरू की हार हुई थी। 1962 में लोकसभा चुनाव के बाद उपचुनाव हुए और राम मनोहर लोहिया भी लोकसभा पहुंच गए।

डॉ. लोहिया ने उन दिनों एक पैम्फलेट छपवाया था, इस पैम्फलेट में नेहरू के खर्चों का जिक्र किया गया था। लोहिया ने कहा कि जिस देश में भारत की 70 फीसदी आबादी प्रतिदिन 3 आने से कम पर गुजारा करती है, वहीं देश के प्रधानमंत्री पर रोजाना 25 हजार रुपए खर्च होना बेहद शर्मनाक है।

तब पंडित नेहरू ने योजना आयोग का हवाला देते हुए कहा था कि योजना आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की 70 फीसदी आबादी की रोजाना आमदनी 15 आना है। इस पर लोहिया ने कहा कि 15 आने आय होने के बावजूद भी नेहरू पर खर्च होने वाले 25 हजार रुपयों में लाखों आने होते हैं।

पंडित नेहरू का स्वभाव कितना सरल था, इस रोचक किस्से से इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। दरअसल एक बार पंडित जवाहरलाल नेहरू अपने राजनीतिक सहयोगियों के साथ किसी ग्रामीण इलाके से गुज़र रहे थे। तभी उन्होंने रास्ते में चने का खेत देखा। उन्होंने चने खाने की इच्छा जताई। फिर क्या था कार रूकी और लोग खेत में घुस गए। पंडित नेहरू ने केवल चने की फलिया तोड़ी लेकिन कुछ लोगों ने चने के पौधे ही उखाड़ डाले। इस पर नेहरू ने उन्हें डांटते हुए कहा कि जानवर हो क्या? पौधे उखाड़ने से नुकसान होता है, ऐसा तो केवल जानवर ही करते हैं।

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