अगले वर्ष किसको पीछे धकेल कर हम पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हो जायेंगे,जानिए !
इंटरनेट डेस्क। एक कहावत है, ‘समंकों से कुछ भी सिद्ध किया जा सकता है।’ ‘भारत फ्रांस को पछाड़ कर संसार की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हो गई है’, अगले वर्ष ब्रिटेन को पीछे धकेल कर हम पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हो जायेंगे। ये दोनों कथन इसी कहावत को चरितार्थ कर रही है। इन कथनों से यह आभास सरकारी पक्ष द्वारा दिये जाने का प्रयास किया जा रहा है जैसे यह कोई चमत्कार है। जीडीपी के समकों के आधार पर तो यह तथ्य सही है लेकिन जनकल्याण की दृष्टि से यह पूरी तरह असत्य है।
उन्हीं दिनों में ऐसे समाचार भी आये कि मुकेश अम्बानी एशिया के सबसे धनी व्यक्ति हो गये हैं, खुदरा महंगाई दर पिछले पांच माह में सर्वाधिक हो गई है, कृषि विकास दर 1.4 प्रतिशत वार्षिक रह गई है, निर्यात-आयात का अंतर पिछले पांच वर्षों में सर्वाधिक ऋणात्मक रहा है, चीन से प्रति वर्ष करीब 84 अरब डालर का व्यापार होता है। जिसमें हमारा व्यापार असंतुलन 51 अरब डालर का है, औद्योगिक विकास दर गिर रही है, विश्व श्रम संगठन के अनुसार हम सर्वाधिक बेरोजगारी वाले देशों में है, राष्ट्रसंघ के अनुसार महिला उत्पीडऩ के मामले में हम सबसे ऊपर हैं, रोजगार के अवसर नकारात्मक होते जा रहे हैं, इंजीनियरिंग के उपाधी धारी केवल 6.4 प्रतिशत विद्यार्थी ही नौकरी देने लायक हैं, सरकार ने रोजगार संबंधि आंकड़े संकलित करवाना बंद करवा दिये हैं, प्रधानमंत्री जिन्होंने ‘आंकड़ों’ से ही विपक्ष को मार लगाई है अब कहने लगे हैं, ‘आंकड़ों’ में क्या रखा है।
इसके साथ ही भारतीय अर्थव्यवस्था का यथार्थ यह है कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार बैंकों का एनपीए याने बट्टा खाता रकम 9 लाख करोड़ रुपयों से अधिक हो गई है। जो अर्थशास्त्र के जानकारों के अनुसार न्यूनतम 15 लाख करोड़ रुपये के हैं। पिछले वर्ष बैंक घोटाले बीस प्रतिशत बढ़े हैं, बैंकों की खस्ता हालात को छिपाने के लिये घाटे वाली बैंकों का विलय लाभ वाली या कहें कम घाटे वाली बैंकों में किया जा रहा है, कुछ अति बीमार बैंकों की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा कर उन्हें मृत्यु के करीब पहुंचाया जा रहा है, बैंक सेवाओं पर शुल्क असहनीय सीमा तक पहुंचाया जा रहा है।
यहां लेखक का स्वयं का अनुभव ही बताना सामयिक है। जिसके अंतर्गत खाते में जमा पर्याप्त होते हुये भी चैक अनादरित करने पर खाते में से 690 रुपये काट लिये गये। काफी वाद विवाद के बाद पुन: यह राशि क्रेडिट की गई। गलती यह थी कि बैंक ओडी खाता बारह माह में एक दिन अक्रियाशील कर देता है उसे स्वत: क्रियाशील नहीं किया था। एक व्यापारी, उद्योगपति, व्यवसायी के लिये उसकी छवि का दृष्टि से ऐसी बल्डर कितनी महंगी हो सकती है इसका आभास बैंककर्मी को नहीं होता है।