मायावती एक ऐसी दलित महिला हैं, जिन्हें समाज का कोई खौफ नहीं। वह समाज के हर उस नियम को तोड़ती हैं, जिसे तोड़ने की ख्वाहिश देश की हर महिला अपने दिल में रखती है। मधुर बोलना, नजरें झुका के चलना, मजाक मत कीजिए और सजने-संवरने की महिला परंपरा को वह कब का लात मार चुकी हैं। कहते हैं कि लज्जा स्त्रियों का आभूषण है, लेकिन मायावती सूट पहनती हैं और जूतियां भी अपने साथी नेताओं को एक पैर पर खड़ा रखती हैं।

मायावती की सियासी ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपराध की दुनिया से राजनीति एंट्री लेकर पूर्वांचल का रॉबिनहुड बनने वाले बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी भी इनके साथ चप्पल उतारकर स्टेज शेयर करते हैं।
समाज के नियमों से बेखौफ माया ने कभी शादी नहीं की, सभी महिलाओं की तरह बच्चे नहीं पैदा किए और ना ही कभी परिवार बसाया। यूपी में परिवार विहीन होना शास्त्रों में पाप की कैटेगिरी में आता है। मायावती ने जिंदगी का हर विष पिया है।

समाज की परवाह किए बगैर माया ने कांशीराम के घर में रहने का फैसला किया। तमाम लांछनों के बावजूद भी मायावती ने समाज की परवाह नहीं की। यह एक लड़की की असली ताकत की झलक थी।
मायावती ने देश को यह सिखा दिया है कि एक औरत किस तरह से अपनी ताकत दिखाती है। आज तक कोई नहीं कह पाया कि यह लड़की तो मर्दों की तरह काम करती है। ऐसा नहीं कि मायावती पर करप्शन के आरोप नहीं लगे, लेकिन आप साबित तो कीजिए। वास्तव में मायावती भारत के दलित समाज की औरतों की प्रतिनिधि हैं, नेता हैं।

आपको जानकर यह हैरानी होगी कि बसपा कभी मैनिफेस्टो जारी नहीं करती। जानते हैं क्यों? क्योंकि बसपा सुप्रीमो खुद में एक एजेंडा हैं, घोषणापत्र हैं। मायावती को भारतीय राजनीति का जादूगरनी कहना सटीक बैठता है। सियासी विरोधी भी यह बात जरूर कहते हैं कि लॉ एंड ऑर्डर में बहिन जी का जवाब नहीं है। सियासी रूप से ताकतवर यूपी जैसे राज्य में अपनी प्रतिमा का अनावरण एक दलित महिला करती है, यह दो हजार साल पुरानी परंपरा के लिए चैलेंज है। यूपी की इस दलित लड़की ने सबको राजनीति सिखा दी। ऐसे में यदि मायावती प्रतिमा का अनावरण नहीं करती तो आखिर कौन करता?

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