अंतरिक्ष यात्रा के दौरान टॉयलेट कैसे करते हैं एस्ट्रोनॉट्स, तरीका है बहुत खतरनाक
अंतरिक्ष यात्रा सुनने में जितनी अच्छी लगती है असल में उतनी ही मुश्किल भी है। अंतरक्षि में यात्रियों को बहुत से परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अंतरिक्ष में जीरो ग्रैविटी से तालमेल बैठाने में काफी मुश्किलें आती हैं और उससे भी ज्यादा मुश्किल तब होती है जब उन्हें मल-मूत्र का त्याग करना हो।
कुछ सालों बाद अंतरिक्ष यात्रियों के लिए कंडोम की तरह दिखने वाला पाउच बनाया गया लेकिन यह बार-बार फट जाता था। वहीं शौच के लिए अंतरिक्ष यात्रियों को पीछे की तरफ एक बैग चिपकाकर रखना पड़ता था। इससे अंतरिक्ष यात्रियों का काम तो किसी तरह चल जाता था, लेकिन वे मल-मूत्र की गंध से बहुत परेशान रहते थे।
अपोलो मून मिशन के दौरान पेशाब के लिए बनाए गए पाउच को एक वॉल्व से जोड़ दिया गया। वॉल्व को दबाते ही यूरिन स्पेस में चला जाता था, लेकिन यहां समस्या ये थी कि अगर वॉल्व दबाने में एक सेकेंड की देरी भी हुई तो यूरिन अंतरिक्ष यान में ही तैरने लगता। 1980 के दौरान नासा ने मैग्जिमम एब्जॉर्बेसी गार्मेंट (एमएजी) बनाया, जो एक तरह का डायपर था। इसे खास तौर पर महिला अंतरिक्ष यात्रियों के लिए बनाया गया था। पुरुष अंतरिक्ष यात्री भी इसका उपयोग करते थे।
इसके बाद नासा ने जीरो-ग्रैविटी टॉयलेट बनाया। इसमें अंतरिक्ष यात्री को पीछे बैग तो नहीं बांधना पड़ता, लेकिन शौच करने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। अंतरिक्ष में मल खुद-ब-खुद बाहर नहीं आता है, इसलिए वे एक विशेष तरीके का गलव्स पहनकर उसकी मदद से मल को जीरो-ग्रैविटी टॉयलेट में डालते हैं। जीरो ग्रैविटी टॉयलेट में एक पंखा लगा होता है जो मल को खींचकर कंटेनर में डाल देता है। इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में अभी इसी टॉयलेट का इस्तेमाल हो रहा है।