साल 1971 में अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन को इस बात की जानकारी मिल चुकी थी कि भारत अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान के विरूद्ध युद्ध की तैयारी में जुटा है। उन दिनों अमेरिका को इस बात का डर था कि यदि भारत इस युद्ध में जीत गया तो इस देश के समर्थन से एशिया में सोवियत संघ का विस्तार बढ़ जाएगा।

28 मार्च, 1971 को पाकिस्तान ने अमेरिकी सेक्रेटरी ऑफ स्टेट विल रोजर को एक पत्र लिखा। इस पत्र में लिखा था कि हमारी सरकार देश के पूर्वी हिस्से में फैली असंतुलन की स्थिति को काबू करने में पूरी तरह से फेल हो गई है। अब अमेरिका को इस बात का यकीन हो गया कि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध होना तय है, इसलिए वह इस युद्ध में चीन को भी शामिल करना चाहता था। इसके लिए पाकिस्तान के जरिए चीन को यह संदेश पहुंचाया गया।

भारत यह सोच भी नहीं सकता था कि अमेरिका पाकिस्तान की इस तरह से मदद करेगा। लिहाजा 3 दिसंबर 1971 की रात को पाकिस्तान की ओर से हमला करते ही भारतीय सेना ने युद्ध का बिगुल बजा दिया। युद्ध की सूचना मिलते ही अमेरिका ने पाकिस्तान का साथ देने के लिए अपने शक्तिशाली युद्धपोत यूएसएस एंटरप्राइसेस बंगाल की खाड़ी के लिए रवाना कर दिया। अमेरिका 5000 टन न्यूक्लियर पॉवर एयरक्राफ्ट युद्धपोत यूएसएस एंटरप्राइसेस के जरिए भारत को आत्मसमर्पण के लिए धमकाना चाह रहा था। इस बात की सूचना मिलते ही भारतीय नौसेना ने समुद्र में अपने युद्धपोत विक्रांत को उतार दिया।

इसी बीच सोवियत खुफिया एजेंसी ने एक सूचना दी कि ए​क ब्रिटीश युद्धपोत भी भारतीय महाद्वीप की ओर बढ़ रहा है। दरअसल अमेरिका और ब्रिटेन दोनों चाहते थे कि भारत इस युद्ध में पाकिस्तान के आगे घुटने टेक दे। इसके बाद तत्कालीन भारत सरकार ने दुश्मन का सामना करने के लिए इंडो-सोवियत संधि के तहत रूस से मदद मांगी। 13 दिसंबर 1971 को एडमिरल व्लादिमीर करुपलयाकोव के नेतृत्व में सोवियत संघ ने न्यूक्लियर हथियारों से लैस युद्धपोत और सबमरीन भेज दी।

मौजूदगी जताने के लिए रूसी सबमरीन को भारतीय महासागर के तल पर रखा गया, ताकि दुश्मन को पता चल जाए कि भारत अकेला नहीं है। रूस के इस बढ़ते कदम को देखकर ब्रिटीश युद्धपोत वापस चला गया, तथा अमेरिका ने भी खाड़ी से अपनी सेना वापस बुला ली। इस युद्ध के बाद भारत ने परमाणु हथियारों तथा पनडुब्बियों पर ध्यान देना शुरू किया।

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