लोकसभा चुनाव 1999 में रायबरेली की एक छोटी सी जनसभा में 27 साल की एक लड़की भाषण देने के लिए कांग्रेस के मंच से खड़ी हुई। गोरा चेहरा, तीखी नाक, सूती साड़ी पहने उस लड़की ने जो भाषण दिया वह इस प्रकार है- यह इंदिरा जी की कर्मभूमि है, यह भारत के उस बेटी की कर्मभूमि है जिस पर मुझे सबसे ज्यादा गर्व है। वह केवल मेरी दादी ही नहीं बल्कि देश के करोड़ों जनता की मां समान थीं। वह उस परिवार की सदस्य थीं, जिसके दिल में आपके लिए दर्द था और हमेशा रहेगा। आपने एक ऐसे शख्स को अपने इस क्षेत्र में आने कैसे दिया, जिसने मेरे परिवार के साथ गद्दारी की। मेरे पिता जी के मंत्रिमंडल में रहते हुए उनके खिलाफ साजिश की। उस शख्स ने अपने भाई के पीठ में छुरी मारी है। उसने कांग्रेस में रहते हुए सांप्रदायिक शक्तियों के साथ हाथ मिलाया। वह आपके लिए कभी भी निष्ठा के साथ काम नहीं कर सकता है। भाषण खत्म होते ही वह लड़की सबके जेहन में छा जाती है। जी हां उस लड़की का नाम था प्रियंका गांधी।

जानकारी के लिए बता दें कि 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद कैप्टन सतीश शर्मा को अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ने का अवसर मिला था। 27 साल की उम्र में ही प्रियंका गांधी ने अमेठी और रायबरेली में कांग्रेस का चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाल रखा था। पिता राजीव गांधी के साथ रायबरेली और अमेठी का दौरा करते करते हुए वहां की जनता के लिए प्रियंका गांधी इंदिरा का दूसरा रूप चुकी थीं।

प्रियंका गांधी अपने पिता और दादी के तर्ज पर ही छोटी-छोटी जनसभाएं की थीं। इस चुनावी मुकाबले में ना केवल सतीश शर्मा विजयी रहे बल्कि अरुण नेहरु को बुरी हार का सामना करना पड़ा था। यह सच है कि 1991 में रायबरेली में प्रियंका गांधी का पहला भाषण राजनीति में डेब्यू था। मतलब साफ है, सियासत से उनकी पहली मुठभेड़ तो 1991 में ही शुरू हो गई थी।

बता दें कि राजीव गांधी की मौत के बाद 10 जनपथ को किले की तरह तब्दील कर दिया गया था। घर के किसी सदस्य को आवास से बाहर जाने की इजाजत नहीं थी। 10 जनपथ में मिलने वालों का तांता लगा हुआ था। दुनिया के कोने-कोने से सांत्वना भरे खत आ रहे थे। सोनिया गांधी अंदर से पूरी तरह से टूट चुकी थीं, ऐसे में उनको सबसे ज्यादा सहारा दिया उनकी बेटी प्रियंका गांधी ने।

पिता की मौत ने प्रियंका को भी पूरी तरह से बदलकर रख दिया था। वह अखबारों में अपने पिता के बारे में छपी एक-एक लाइन नोट किया करती थीं। अमेठी से आने वाले लोगों से भी मिलती थीं। संवेदना से भरे खतों का जवाब लिखतीं। बता दें कि उन दिनों राहुल गांधी हार्वड में पढाई कर रहे थे। अब पिता की मौत के बाद यह तय नहीं हो पा रहा था कि आगे की पढ़ाई के लिए राहुल हार्वड जाएंगे भी या नहीं। उस वक्त प्रियंका गांधी ने जोर देकर कहा ​था कि राहुल को अपनी पढ़ाई जारी रखनी चाहिए, मैं मां को संभाल लूंगी।

एक बार इंटरव्यू में प्रियंका गांधी ने कहा था कि 16-17 साल की उम्र में मुझे यह लगता था कि मुझे जिंदगी में राजनीति ही करनी है। लेकिन राजनीति में इतना कुछ देखने और सहने के बाद मैंने यह तय किया कि मैं राजनीति में नहीं जाउंगी। गौरतलब है कि 7 साल के भीतर गांधी परिवार के दो लोगों की हत्या हो चुकी थी।

Related News