भारत रत्न से सम्मानित 84 वर्षीय प्रणब मुखर्जी को 10 अगस्त की दोपहर 12:07 बजे आर्मी अस्पताल में भर्ती किया गया था। उनके मस्तिष्क में थक्का जम गया था। इसी को निकालने के लिए ऑपरेशन किया गया। इसके बाद से ही राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की हालत लगातार नाज़ुक बनी हुई थी। वेंटिलेटर पर रखे जाने के बाद भी उनके स्वास्थ्य में किसी प्रकार का सुधार नहीं आया। अंतत: लगभग बीस दिनों के इलाज के बाद उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

मुखर्जी के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1969 से शुरू हुई थी। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रणब मुखर्जी को कांग्रेस में शामिल किया था। इंदिरा के दौर में प्रणब प्रधानमंत्री के सबसे विश्वस्त लोगों में से एक थे। इंदिरा गांधी ने उन्हें अपनी सरकार में केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह दी थी। प्रणब मुखर्जी 1982 से 84 तक वित्त मंत्री रहे थे। इसके साथ ही 1980 से 85 तक वे राज्यसभा में सदन के नेता भी रहे थे।

इंदिरा गांधी के निधन के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री बन गए और इंदिरा गांधी की कैबिनेट में नंबर-2 रहे प्रणब मुखर्जी को मंत्री नहीं बनाया गया। दुखी होकर प्रणब कांग्रेस से अलग हो गए और राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली। कई साल तक वह अलग ही रहे।


2004 के लोकसभा चुनाव में पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए। विदेशी मूल से होने के आरोपों से घिरी सोनिया गांधी ने ऐलान कर दिया कि वह प्रधानमंत्री नहीं बनेंगी। इसके बाद उन्होंने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना, प्रणब मुखर्जी के हाथ से दूसरा मौका भी निकल गया।


2012 में इस्तीफे से पहले मनमोहन सिंह की सरकार में उनकी हैसियत नंबर- 2 के नेता की थी। 2012 में कांग्रेस ने उन्हें राष्ट्रपति चुनाव में उतारा और वह आसानी से पीए संगमा को चुनाव में हराकर देश के 13वें राष्ट्रपति बन गए।

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