भारतीय सिनेमा में सुचित्रा सेन का काफी नाम है। वे बंगाली सिनेमा की बहुत बड़ी आइकन है। उन्होंने जीवन के आखिर 35 सालों में सभी से मिलना और किसी इवेंट में शामिल होना बंद कर दिया था। यहाँ तक कि उन्होंने हिंदी सिनेमा के लिए दादा साहेब फाल्के अवार्ड देने से ठुकरा दिया था क्योकिं वे इवेंट में नहीं जाना चाहती थी। उन्हें पद्मश्री भी मिला और बंगाल सरकार का बंगा बिभूषण अवार्ड से सम्मानित किया गया था। वे पहली ऐसी भारतीय एक्ट्रेस थी जिन्हे इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सम्मान मिला था।

सुचित्रा सेन का जन्म बंगाल के पबना कस्बे में 6 अप्रैल 1931 को हुआ था। पचास का दशक सुचित्रा के करियर के लिए बेहतरीन रहा जिसमें उन्होंने बहुत सी शानदार फ़िल्में की।

उनकी 1975 में रिलीज होने वाली नामी फिल्म ‘आंधी’ थी तब भारत में इमरजेंसी का दौर चल रहा था। उस समय सुचित्रा के किरदार आरती को लोगों ने इंदिरा गांधी से जोड़कर देखा था। इस कारण उस समय इस फिल्म को रिलीज नहीं किया गया और बैन कर दिया गया। इमरजेंसी खत्म होने के बाद उनकी फिल्म रिलीज हो पाई।

निर्माता जे. ओमप्रकाश ने डायरेक्टर गुलजार के सामने एक फिल्म बनाने का प्रस्ताव दिया जिसमे वे सुचित्रा सेन और संजीव कुमार को लेना चाहते थे। पहले इस फिल्म की स्टोरी सचिन भौमिक ने लिखी थी जो गुलजार को पसंद नहीं आई इसलिए उन्होंने खुद एक स्टोरी लिखना शुरू किया। ये कहानी एक ताकतवर महिला राजनेता और एक फाइव स्टार होटल के मालिक के संबंधों पर आधारित थी।

लेकिन स्क्रिप्ट लिखने के बाद गुलजार को पता चला कि ‘काली आंधी’ नाम से कमलेश्वर ने एक उपन्यास लिखा है। उन्होंने इस स्टोरी को फिल्म में शामिल करने के लिए कहा। तब भौमिक-गुलजार-कमलेश्वर ने फिल्म आंधी बनाई। उस फिल्म से सुचित्रा सेन को आज भी याद किया जाता है।

जब ये फिल्म इंदिरा गांधी के शासन में बैन कर दी गई तो समीक्षकों ने कहा कि “सुचित्रा ने अपने अभिनय से इंदिरा गांधी को डरा दिया है।”

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