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महाभारत ग्रंथ के मुताबिक, एक दिन ऋषि पराशर यमुना पार करने के लिए एक नाव पर सवार हुए। उस नाव को मछुआरे धीवर की पुत्री सत्यवती चला रही थी। योग सिद्धि संपन्न ऋषि पराशर सत्यवती की सुंदरता और यौवन को देखकर व्याकुल हो उठे।

ऋषि पराशर ने निषाद कन्या सत्यवती से शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा जताई। इसके बाद सत्यवती ने कहा कि इस प्रकार का संबंध अनैतिक होगा, इसलिए मैं अनैतिक संबंध से संतान नहीं पैदा कर सकती हूं। लेकिन सत्यवती के समक्ष ऋषि पराशर प्रणय निवेदन करने लगे। DEMO PIC

फिर सत्यवती ने ऋषि पराशर के सम्मुख तीन शर्तें रखीं। पहली शर्त यह कि उन्हें ऐसा करते हुए कोई नहीं देखे। इसके बाद तुरंत ही ऋषि पाराशर ने एक कृत्रिम आवरण बना दिया।

दूसरी शर्त यह थी कि उसकी कौमार्यता किसी भी हालत में भंग नहीं होनी चाहिए। तब ऋषि पराशर ने सत्यवती को यह आश्वासन दिया कि बच्चे के जन्म के बाद उसकी कौमार्यता पहले जैसी ही हो जाएगी।

तीसरी शर्त यह थी कि सत्यवती के शरीर से जो मछली जैसी दुर्गंध आती है, वह एक उत्तम सुगंध में परिवर्तित हो जाए। तब पराशर ऋषि ने उसके चारों ओर सुगंध का एक ऐसा वातावरण तैयार कर दिया, जिसे 9 मील दूर से ही महसूस किया जा सकता था। DEMO PIC

इन तीनों शर्तों को पूरा करने के बाद सत्यवती और ऋषि पराशर ने नाव में शारीरिक संबंध बनाए। इस शारीरिक संबंध के फलस्वरूप एक द्वीप पर सत्यवती ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम कृष्णद्वैपायन रखा। ऋषि पराशर का यही पुत्र आगे चलकर वेद व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

महाभारत कथा के मुताबिक, महर्षि वेद व्यास के ही आशीर्वाद से धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर का जन्म हुआ था। इतना ही नहीं वेदव्यास की कृपा से ही धृतराष्ट्र और गांधारी से 100 संतानें हुई।

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