भगवान परशुराम थे ब्राह्मण, लेकिन उनमें क्षत्रियों के गुण क्यों थे?
हिंदू धर्म के सभी अनुयायी इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि भगवान परशुराम एक ब्राह्मण थे। ब्राह्मण पुत्र होने के बावजूद परशुराम का स्वभाव क्षत्रियों की तरह था। यह रहस्य जानने के लिए इस स्टोरी को जरूर पढ़ें।
जानकारी के लिए बता दें कि महर्षि भृगु के पुत्र ऋचिक की पत्नी का नाम सत्यवती था। विवाह के बाद सत्यवती ने अपने ससुर से स्वयं तथा अपनी माता के लिए पुत्र प्राप्ति की याचना की। इसके बाद महर्षि भृगु ने सत्यवती को दो फल देते हुए कहा कि ऋतु स्नान के बाद तुम गूलर के वृक्ष का यह फल खा लेना और तुम्हारी मां पीपल के वृक्ष का आलिंगन करने के बाद ही इस फल का सेवन करें।
इसके बाद सत्यवती व उनकी मां ने इस काम में गलती कर दी। तपोबल से महर्षि भृगु को जैसे ही यह बात पता चली तब उन्होंने अपनी पुत्रवधू सत्यवती से कहा कि तूने गलत वृक्ष का आलिंगन किया है, इसलिए तेरा पुत्र ब्राह्मण होने पर भी क्षत्रिय गुणों वाला होगा। तेरी मात्रा का पुत्र क्षत्रिय होने पर भी ब्राह्मणों की तरह आचरण करेगा।
इसके बाद सत्यवती ने महर्षि भृगु से यह निवेदन किया कि मेरा पुत्र क्षत्रिय गुणों वाला नहीं हो, भले ही मेरा पौत्र क्षत्रिय वृत्ति का हो। महर्षि भृगु ने कहा कि ठीक है ऐसा ही होगा। कुछ समय पश्चात सत्यवती को एक पुत्र की प्राप्ति हुई जो आगे चलकर जमदग्नि ऋषि के नाम से विख्यात हुए।
जमदग्नि ऋषि का विवाह रेणुका से हुआ। जमदग्नि के चार पुत्र हुए, उनमें से एक थे परशुराम। इस प्रकार सत्यवती की एक भूल के कारण उनके पौत्र परशुराम का स्वभाव क्षत्रियों समान हो गया था।