महाभारत में एक नहीं तीन श्री कृष्ण थे, जरूर पढ़ें यह चौंकाने वाला रहस्य
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महाभारत महाकाव्य में कई रहस्य छुपे हुए हैं। आज भी ऐसे कई रहस्य हैं जिन्हें बहुत कम ही लोग जानते होंगे। इस स्टोरी में हम आपको बताने जा रहे हैं कि महाभारत में एक नहीं बल्कि तीन श्रीकृष्ण थे।
पहले कृष्ण- महाभारत के पहले श्रीकृष्ण महर्षि वेदव्यास थे, जिन्होंने महाभारत की रचना की थी। इनकी माता का नाम सत्यवती और पिता का नाम महर्षि पाराशर था। चूंकि महर्षि वेदव्यास का रंग सांवला था और इनका जन्म एक द्वीप पर हुआ था। इसलिए इन्हें श्रीकृष्ण द्वैपायन कहा जाता है। दूसरी कथा यह है कि महर्षि वेदव्यास युवा होते ही तपस्या करने द्वैपायन द्वीप चले गए। तपस्या करने के कारण वे काले हो गए। इसलिए उन्हें कृष्ण द्वैपायन कहा जाने लगा।
सवाल यह कि इनको पहला कृष्ण क्यों कहते हैं। दरअसल ये भी विष्णु के ही अवतार थे। श्रीमद्भागवत में भगवान विष्णु के जिन 24 अवतारों का वर्णन है, उनमें महर्षि वेदव्यास का भी नाम है। इन्हीं के प्रयासों से भागवत धर्म की स्थापना हुई थी।
महर्षि वेदव्यास ने ही संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की थी, जिससे संजय ने धृतराष्ट्र को पूरे युद्ध का वर्णन महल में ही सुनाया था। महर्षि वेदव्यास ने ही अश्वत्थामा को अपना ब्रह्मास्त्र वापस लेने को कहा था। महर्षि वेदव्यास ने जब कलयुग का बढ़ता प्रभाव देखा तो उन्होंने ही पांडवों को स्वर्ग की यात्रा करने के लिए कहा था।
महर्षि वेदव्यास ने महाभारत युद्ध के 15 वर्ष के पश्चात एक दिन के लिए युद्ध में मारे गए कौरव और पांडवों के भाई बंधुओं को जीवित कर दिया था। हिंदू धर्म ग्रंथों में जो अष्ट चिरंजीवी (8 अमर लोग) बताए गए हैं, महर्षि वेदव्यास भी उन्हीं में से एक हैं।
दूसरे कृष्ण - महाभारत के दूसरे श्रीकृष्ण के बारे में तो सभी जानते हैं जिन्होंने हर समय पर पांडु पुत्रों युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव का साथ दिया। अर्जुन का सारथी बनकर कुरुक्षेत्र के युद्ध में उन्हें विजय दिलाई। वही महाभारत के असली महानायक थे।
तीसरे कृष्ण - महाभारत के इस तीसरे कृष्ण को नकली कृष्ण कहा जाता है। पुंड्र देश के राजा का नाम पौंड्रक था। इसके पिता का नाम वसुदेव था। इसलिए वह खुद को वासुदेव कहता था। यह द्रौपदी स्वयंवर में उपस्थित था। कौशिकी नदी के तट पर किरात, वंग एवं पुंड्र देशों पर इसका स्वामित्व था।
पौंड्रक को उसके चापलूस मित्रों ने यह बताया कि असल में वही परमात्मा वासुदेव और वही विष्णु का अवतार है, मथुरा का राजा कृष्ण नहीं। कृष्ण तो ग्वाला है। बस यह बात उसके दिमाग में बैठ कई थी और उसने भी श्रीकृष्ण की तरह अपना रंग और रूप बना लिया था।
राजा पौंड्रक नकली चक्र, शंख, तलवार, मोर मुकुट, कौस्तुभ मणि, पीले वस्त्र पहनकर खुद को कृष्ण कहता था। एक दिन उसने भगवान कृष्ण को यह संदेश भी भेजा था कि पृथ्वी के समस्त लोगों पर अनुग्रह कर उनका उद्धार करने के लिए मैंने वासुदेव नाम से अवतार लिया है। भगवान वासुदेव का नाम एवं वेषधारण करने का अधिकार केवल मेरा है। इन चिह्रों पर तेरा कोई भी अधिकार नहीं है। तुम इन चिह्रों एवं नाम को तुरंत ही छोड़ दो, वरना युद्ध के लिए तैयार हो जाओ। कुछ दिनों पश्चात श्रीकृष्ण ने पौंड्रक के युद्ध की चुनौती स्वीकार कर ली। युद्ध के मैदान में नकली कृष्ण को देखकर भगवान कृष्ण खूब हंसे। इसके बाद युद्ध के दौरान पौंड्रक का वध कर श्रीकृष्ण पुन: द्वारिका चले गए।