लोकसभा चुनाव 2019 : नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ बनारस से क्यों नहीं लड़ी प्रियंका गांधी?
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पिछले कुछ दिनों से यह खबर सुर्खियों में बनी हुई थी कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाराणसी से पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ सकती हैं। लेकिन गुरुवार को जब कांग्रेस ने वाराणसी से नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ प्रियंका गांधी के बजाय स्थानीय नेता और पूर्व विधायक अजय राय को चुनाव मैदान में उतारने का निर्णय लिया तो इन सभी कयासों पर विराम लग गया।
कांग्रेस के कार्यकर्ता भी चाहते थे कि प्रियंका गांधी वाराणसी में पीएम नरेंद्र मोदी को चुनौती दें। अभी कुछ ही दिन पहले एक सवाल का जवाब देते हुए प्रियंका गांधी ने मीडियाकर्मियों से कहा था कि यदि पार्टी चाहेगी तो वो चुनाव लड़ेंगी। प्रियंका गांधी ने बनारस का दौरा भी किया था, जहां उनका भव्य स्वागत किया गया।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर कांग्रेस पार्टी ने प्रियंका गांधी को वाराणसी से चुनाव मैदान में क्यों नहीं उतारा? इसके पीछे असली वजह क्या रही होगी?
इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार नवीन जोशी कहते हैं कि प्रियंका को मैदान में उतारने का सवाल सिर्फ़ एक सनसनी मचाने के लिए था, कोई गंभीर सवाल नहीं था, इसे पहले से ही समझा जाना चाहिए था। क्योंकि प्रियंका गांधी अपनी चुनावी राजनीति की शुरूआत पीएम मोदी से लड़कर तो नहीं ही करना चाहेंगी, क्योंकि कई संभावनाओं के बाद भी उनकी जीत की उम्मीद नहीं की जा सकती।
नवीन जोशी के मुताबिक प्रियंका गांधी को यदि चुनाव लड़ना होता तो वो रायबरेली या किसी अन्य सीट से लड़ती। क्योंकि यहां से उनके संसद जाने का रास्ता आसान होता, न कि बनारस से। जानकारी के लिए बता देें कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटें आती हैं, इनमें से 27 सीटों पर भाजपा का कब्जा है। इन सीटों में से एक वाराणसी भी हैं, जहां से पीएम मोदी सांसद हैं।
कांग्रेस ने बनारस से अजय राय को मैदान में उतारा है, जबकि महागठबंधन की ओर से समाजवादी पार्टी उम्मीदवार शालिनी यादव को टिकट मिला है। बता दें कि लोेकसभा चुनाव 2014 में नरेंद्र मोदी को करीब 5.8 लाख वोट मिले थे। अरविंद केजरीवाल क़रीब दो लाख वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहे। तीसरे नंबर पर कांग्रेस के अजय राय को मात्र 75 हज़ार वोट मिले थे। जाहिर यदि प्रियंका गांधी बनारस से चुनाव लड़ती तो समीकरण कुछ बदल जाता। इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार नवीन जोशी का मानना है कि प्रियंका गांधी के बनारस से चुनाव लड़ने पर कांग्रेस को निश्चित तौर पर फायदा मिलता पर उससे जीत के आसार नहीं बनते।
हां, प्रियंका गांधी का असर बनारस के साथ-साथ जौनपुर, मऊ और आज़मगढ़ वग़ैरह की सीटों पर देखने को जरूर मिलता लेकिन इस छोटे फायदों के बदले प्रियंका गांधी के रूप में बड़ी कीमत चुकानी पड़ती। वरिष्ठ पत्रकार जतिन गांधी कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी यह कभी नहीं चाहेगी कि उसके भविष्य के नेता की शुरूआत किसी हार से हो। प्रियंका पार्टी का बड़ा चेहरा हैं तथा पार्टी का भविष्य हैं। ऐसे में शुरुआत में ही उनकी हार हो जाए, ऐसा पार्टी कभी नहीं चाहेगी।
हांलाकि इस मामले को लेकर कांग्रेस का कहना है कि वो विपक्ष के बड़े नेताओं के ख़िलाफ़ अपना मजबूत उम्मीदवार नहीं उतारती है। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी अपने विरोधियों का सम्मान करते थे और उन्हें संसद में देखना चाहते थे। चाहे वो श्यामा प्रसाद मुखर्जी हों या फिर अटल बिहारी वाजपेयी।
इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार नवीन जोशी का मानना है कि इस मुद्दे को नेहरू की रवायत कह सकते हैं या फिर लोकतंत्र की परंपरा। यह स्पष्ट है कि संसद में बड़े नेताओं की मौजूदगी से लोकतांत्रिक विमर्श बेहतर होते हैं।