गोस्वामी तुलसीदासकृत श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड में बताया गया है कि खुद की शक्ति का प्रदर्शन कब, कहां और कैसे करना चाहिए। तुलसीदास जी ने हनुमान जी का सीताजी के साथ संवाद के दौरान यह समझाया है कि इंसान को किसी परिस्थिति में कैसा व्यवहार करना चाहिए।

आपको जानकारी के लिए बता दें कि लंका के अशोक वाटिका में हनुमान जी ने सीताजी को अपनी शक्ति दिखाई थी, क्योंकि सीताजी को हनुमान जी पर विश्वास नहीं हो रहा था। बावजूद इसके हनुमानजी ने अपनी शक्ति दिखाने पर तनिक भी अहंकार नहीं किया। श्रीरामचरितमानस के संदुरकांड में वर्णित इस प्रसंग से जुड़ी रोचक जानकारी आप भी पढ़ें।

बता दें कि सीताजी को ढूंढते हुए जब हनुमान जी लंका पहुंचे तब उन्होंने सीता जी से मिलकर यह बताया कि भगवान श्रीराम जल्दी ही वानरों की सेना के साथ लंका पर आक्रमण करेंगे। लेकिन हनुमान जी की बात पर देवी सीता को विश्वास नहीं हो रहा था।

हनुमान जी ने कहा, आप भरोसा रखें। प्रभु श्रीराम यहां जरूर आएंगे और आपको अपने साथ ले जाएंगे। वैसे तो मैं आपको अपने साथ ले जा सकता हूं, लेकिन श्रीराम की आज्ञा नहीं है।

तब सीता जी ने कहा कि लंका के राक्षस बहुत बलवान हैं। वानर तो तुम्हारी तरह ही छोटे-छोटे होंगे, ऐसे में तुम लोग उनसे कैसे जीत पाओगे। इतना सुनने के बाद हनुमान जी ने अपने शरीर का आकार पर्वत समान विशाल कर लिया। हनुमान जी का यह विशालकाय रूप देखकर सीता जी को विश्वास हो गया। इसके बाद हनुमान जी तुरंत अपने सामान्य रूप में आ गए।

श्रीरामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है-

सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल। प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल।।

इसका अर्थ है- हे माता सुनो, वानरों में बहुत बल-बुद्धि नहीं होती, लेकिन प्रभु के प्रताप से बहुत छोटा सर्प भी गरुड़ को खा सकता है।

इस प्रकार हनुमान जी ने अपनी ताकत को परमात्मा से जोड़ दिया। जो लोग अपनी श्रेष्ठता को परमात्मा से जोड़ देते हैं, उन्हें अहंकार नहीं आता है। हनुमान जी से हम सभी को यह बात सीखने की जरूरत है कि हम में कितनी भी काबिलियत हो, लेकिन अहंकार न करें।

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