गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान चालीसा में लिखा है-चारों युग परताप तुम्हारा, है प्रसिद्ध जगत उजियारा। इस चौपाई से तात्पर्य यह है कि हनुमान जी हर युग में किसी न किसी रूप, शक्ति और गुणों के साथ इस संसार में मौजूद रहते हैं। पौराणिक हिन्दू धर्म ग्रंथों में गंधमादन पर्वत का उल्लेख कई बार किया गया है। हिंदू धर्म में यह प्रचलित मान्यता है कि हनुमान जी का निवास स्थान गंधमादन पर्वत है। महाभारत में भी गंधमादन पर्वत की चर्चा की गई है।

हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक गंधमादन पर्वतमाला और इसके वन क्षेत्र में देवता रमण करते हैं। पर्वतों में श्रेष्ठ गंधमादन पर्वत पर कश्यप ऋषि ने भी तपस्या की थी। ऐसा कहा जाता है कि गंधमादन पर्वत पर ऋषि, सिद्धचारण, विद्याधर, देवता, गंधर्व, अप्सराएं और किन्नर निवास करते हैं।

बता दें कि सुमेरु पर्वत की दिशाओं में स्थित गजदंत पर्वतों में से एक को उस काल का गंधमादन पर्वत कहा जाता था। आज की तारीख में यह पर्वत तिब्बत के इलाके में है। जो कभी अपने सुगंधित वनों के लिए प्रसिद्ध था। श्रीमदभागवत में वर्णन मिलता है कि हनुमान जी कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं। बता दें कि अज्ञातवास के समय हिमवंत पार करके पांडव गंधमादन पर्वत पर पहुंचे थे। कथा के मुताबिक एक बार भीम सहस्रदल कमल लेने के लिए गंधमादन पर्वत के वन में पहुंच गए थे, जहां उन्होंने हनुमान जी को लेटे देखा।

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