खतरनाक हथियारों से लैस इंडियन एयरफोर्स के खूंखार गरुड़ कमांडो दुश्मन को खत्म करके ही दम लेते हैं लेकिन लोगों को ये पता नहीं होता है कि इनकी ट्रेनिंग कैसी होती है और इन्हे कैसे तैयार किया जाता है ? तो आइए जानते हैं इस बारे में।

इनकी ट्रेनिंग बेहद ही कठिन होती है। इन कमांडों की ट्रेनिंग सेना की संपत्तियों जैसे सेना की महत्वपूर्ण यूनिटों एवं बेस कैंप, एयरबेस, एयरक्राफ्ट्स, एम्युनेशन होल्डिंग एरिया की सुरक्षा और एयरबार्न ऑपरेशंस, एयरफील्ड सीजर व काउंटर टेरिज्म पर केंद्रित है।

कब हुई स्थापना और कैसे होती है ट्रेनिंग़

आर्मी के पैरा स्पेशल कमांडो व नेवी के मार्कोस (मरीन) कमांडो फोर्स की तरह वर्ष 2004 में की गई थी जिसके पास अत्याधुनिक हथियार भी है। आर्मी और नेवी से अलग, गरुड़ कमांडो वॉलनटिअर नहीं होते। इन्हे सीधे स्पेशल फोर्स की ट्रेनिंग के लिए भर्ती किया जाता है। गार्ड फोर्स जॉइन करने के बाद कमांडो अपने पूरे करियर के लिए यूनिट के साथ रहते हैं। सभी रिक्रूट्स का बेसिक ट्रेनिंग कोर्स 52 हफ्तों का (इंडियन स्पेशल फोर्सेज में सबसे लंबा) होता है। शुरुआती 3 महीनों के प्रॉबेशन पीरियड के दौरान अगले दौर की ट्रेनिंग के लिए बेस्ट जवानों की छंटनी हो जाती है।

इसके बाद इन कमांडोज को ट्रेनिंग स्पेशल फ्रंटियर फोर्स, इंडियन आर्मी और नैशनल सिक्यॉरिटी गार्ड्स के साथ दी जाती है। इस सख्त ट्रेनिंग में सफल होने के बाद कमांडोज को आगे के फेज के लिए भेजा जाता है। इन्हे आगरा के पैराशूट ट्रेनिंग स्कूल भेजा जाता है। मार्कोस और पैरा कमांडोज की तरह गरुण कमांडो भी सीने पर पैरा बैज लगाते हैं। इसके बाद गरुड़ कमांडोज को मिजोरम में काउंटर इन्सर्जन्सी ऐंड जंगल वारफेयर स्कूल (सीआईजेडब्लूएस) में भी ट्रेनिंग दी जाती है।

इन हथियारों से होते हैं लैस

इस संस्थान में न केवल गरुड़ कमांडो, बल्कि दुनियाभर की सेनाओं के सिपाही काउंटर-इन्सर्जन्सी ऑपरेशंस की ट्रेनिंग लेने आते हैं। गरुड़ कमांडोज के पास दुनिया के कुछ सबसे खतरनाक हथियार होते हैं, जिनमें साइड आर्म्स के तौर पर Tavor टीएआर -21 असॉल्ट राइफल, ग्लॉक 17 और 19 पिस्टल, क्लोज क्वॉर्टर बैटल के लिए हेक्लर ऐंड कॉच MP5 सब मशीनगन, AKM असॉल्ट राइफल, एक तरह की एके-47 और शक्तिशाली कोल्ट एम-4 कार्बाइन शामिल हैं।

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