सितंबर 2010 में अफगानिस्तान के हेल्मंड प्रांत में रॉयल गोरखा रायफल्स में हवलदार दीपप्रसाद पुन अकेले ही अपनी चौकी की रखवाली कर रहे थे। उनको अकेले ही कुछ तालिबान लड़ाकों ने घेर लिया। उन्होंने गोलियों तथा रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड से सभी जगह धुआँ कर दिया था। दीपप्रसाद को इस बात का अंदाजा था कि उन्हें मरना तो है ही तो क्यों ना कुछ को मार के ही मरुँ। इसके इस गोरखा सिपाही ने ट्राईपॉड पर मशीनगन लगाई और फिर गोलियों की बौछार कर दी।

उन्होंने इतना तेज रफ्तार से हमला किया कि तालिबानों को सम्भलने का भी मौका नहीं मिला। सैनिक दीप ने 17 ग्रेनेड, छह नॉर्मल ग्रेनेड, एक क्लेमोर माइन, छह फॉस्फोरस ग्रेनेड और मशीनगन से 80 राउंड फायर किए।

हमले के दौरान एक तालिबान एक टावर पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था। तभी गोरखा सैनिक दीप प्रसान पुन ने फायर किया लेकिन उस पर निशाना नहीं लगा पाए। फिर दीप प्रसान ने मशीनगन के ट्राईपॉड से उसके चेहरे पर घातक वार किया जिससे वह जमीन पर औंधे मुंह गिर गया। वह जाबांज योद्धा तब तक उन सैनिकों से लड़ता रहा जब तक कि उसके पास मदद नहीं आ गई। सेना के आने तक गोरखा सिपाही दीप प्रसान पुन ने अकेले ही 30 तालिबानियों को मौत की नींद सुला दी थी।

सैनिक दीप प्रसाद पुन की बहादुरी के लिए लंदन के बकिंघम पैलेस में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने उन्हें कॉन्सपिक्युअस गैलेंट्री क्रॉस अवॉर्ड से सम्मानित किया। वीर गोरखा सैनिक दीप प्रसाद पुन के पिता तथा दादा गोरखा रेजिमेंट में अपनी सेवाएं दे चुके हैं।

Related News