परशुराम ने भगवान शंकर से किया था युद्ध, आखिर क्यों?
पौराणिक कथाओं के अनुसार परशुराम ने अपने ही गुरु भगवान शिव से युद्ध किया था और भगवान शिव द्वारा प्रदत्त फरसे से उन्हें ही चोट पहुंचाई थी। आइए जानते हैं, इस युद्ध की असली वजह। रामायण के मुताबिक परशुराम ने धरती के समस्त क्षत्रिय राजाओं को 21 बार पराजित किया था। अधिकांश राजाओं ने भयभीत होकर उनकी शरण ले ली थी, तो कुछ राजाओं ने ब्राह्मणों से आश्रय लिया था। उन दिनों पृथ्वी के सातों द्वीपों पर परशुराम का एकछत्र राज था। चूंकि पूरी पृथ्वी क्षत्रियों से विहीन हो चुकी थी, ऐसे में परशुराम के सभी उद्देश्य पूरे हो चुके थे।
भूमण्डल के सभी राज्यों को जीतने के पश्चात परशुराम को अश्व्मेध यज्ञ करने का अधिकार प्राप्त हो चुका था। इसलिए परशुराम ने अश्वमेध्य यज्ञ करने की ठानी। कथा के अनुसार, परशुराम के अश्वमेध यज्ञ में सभी ऋषि मुनि तथा राजा आए। इस यज्ञ के मुख्य अतिथि ऋषि कश्यप थे। यज्ञ के सम्पन्न होने के बाद अब दक्षिणा देने की बारी थी। परशुराम ने यज्ञ पूरा होने के बाद सबसे पहले ऋषि कश्यप से पूछा की उन्हें दक्षिणा में क्या चाहिए?
इसके बाद कश्यप ऋषि ने परशुराम से कहा की मुझे आप के द्वारा जीती हुई सारी धरती चाहिए। फिर क्या था परशुराम जी ने सारी धरती कश्यप को दान कर दी। अब कश्यप ऋषि ने परशुराम से प्रसन्न होकर उन्हें ना केवल आशीर्वाद दिया बल्कि भगवान विष्णु का एक अमोघ मंत्र भी दिया।
तत्पश्चात कश्यप ऋषि ने परशुराम से कहा कि तुमने पूरी धरती मुझे दान कर दी है, इसलिए तुम इस धरती पर एक पल के लिए भी नहीं रह सकते, इसलिए शीघ्र यहां से कहीं और चले जाओ। इसके बाद परशुराम दक्षिण की ओर चले गए तथा सह्याद्री पर्वत से समुद्र में अपना फरसा फेंका। इस प्रकार परशुराम का फरसा समुद्र में जहां गिरा उतनी दूरी तक समुद्र पीछे हट गया।
पौराणिक कथा के मुताबिक दक्षिण की ओर जाने से पहले परशुराम विश्राम के लिए महेंद्र पर्वत पर रूके। परशुराम जब महेंद्र पर्वत पर विश्राम कर रहे थे, तब उन्हें अपने गुरु भगवान शिव के वचन याद आने लगे। यह उन दिनों की बात है, जब वे भगवान शिव से शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। भगवान शिव अपने शिष्य परशुराम को परखने के लिए समय-समय पर परीक्षा लिया करते थे। एक दिन भगवान शिव ने परशुराम से कुछ नीति विरूद्ध कार्य करने को कहा।
इसके बाद परशुराम ने भगवान शिव से यह स्पष्ट कर दिया कि वे ऐसा कोई कार्य नहीं करेंगे जो नीति विरूद्ध हो। इस बात को लेकर विवाद इतना बढ़ गया कि भगवान शिव और परशुराम के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। परशुराम ने पहले बाणों से शिव पर प्रहार किया, जिसे भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से काट डाले। अंत में क्रोधित परशुराम ने भगवान शिव से मिले फरसे से ही महादेव पर प्रहार कर दिया।
चूंकि महादेव को अपने अस्त्र का मान रखना था, इसलिए उस अस्त्र के प्रहार को अपने ऊपर ले लिया। इस दौरान भगवान शिव के मष्तक पर बहुत गहरी चोट लगी। इसीलिए भगवान शिव का एक नाम खण्डपरशु भी है। भगवान शिव ने परशुराम के उस प्रहार का बुरा नहीं माना और अपने शिष्य परशुराम को गले से लगा लिया। इसके बाद भगवान शिव ने परशुराम से कहा अन्याय करने वाला चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो, धर्मशील व्यक्ति को अन्याय के विरुद्ध खड़ा होना चाहिए, यह उसका कर्तव्य है।