हमारे देश की राजनीति में अयोध्या और राम जन्मभूमि हमेशा ही सुर्खियों में बने रहते हैं। चुनाव के दिनों में ये चर्चाएं और तेज हो जाती है। बता दें कि अयोध्या का महत्व अयोध्या मंदिर और राम जन्मभूमि से हटकर भी है। जी हां, अयोध्या की हनुमानगढ़ी पूरे देश में प्रसिद्ध है।

आपको बता दें कि 18वीं शताब्दी की समाप्ति से करीब 20-25 साल पहले ही हनुमानगढ़ी ने वयस्क मताधिकार पर आधारित लोकतांत्रिक व्यवस्था को अंगीकार कर लिया था। बावजूद इसके हनुमानगढ़ी के महंत चुनाव के दौरान मतदान नहीं कर पाते हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर इसके पीछे असली वजह क्या है।

फैजाबाद के वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण प्रताप सिंह के मुताबिक अयोध्या की हनुमानगढ़ी ने आंतरिक व्यवस्था के लिए आजादी मिलने से बहुत पहले से ही लोकतांत्रिक चुनाव प्रणाली को अपना रखा है। लेकिन उसकी एक पंरपरा उसके लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित सर्वोच्च पदाधिकारी को अपने मताधिकार के प्रयोग से रोक देती है।

कृष्ण प्रताप सिंह के अनुसार, परंपरा है कि यहां के गद्दीनशीन हनुमानगढ़ी के 52 बीघे के परिसर से बजरंगबली के निशान और शोभा यात्रा के साथ ही बाहर निकल सकते हैं। चूंकि मतदान के दिन शोभा यात्रा निकालना और मतदान केंद्र तक ले जाना संभव नहीं होता, इसलिए हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन को अपनी मतदान की इच्छा का दमन करना पड़ता है। हांलाकि कई बार गद्दीनशीनों को अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं करने पर मलाल भी होता है, लेकिन हारकर वे इस परंपरा के आगे अपना सिर झुका देते हैं।

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