भगवान शिव और नंदी से जुड़ी यह पौराणिक कथा जरूर पढ़ें
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मंदिर में भगवान शिव की प्रतिमा के समक्ष आप नंदी को विराजते आसानी से देख सकते हैं। हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि सभी भक्तों की आवाज़ को नंदी ही शिव तक पहुंचाते हैं। नंदी की प्रार्थना को भगवान शिव कभी अनसुनी नहीं करते, इसलिए भक्तों की हर मनोकामना नंदी की बदौलत पूरी हो जाती है। अब सवाल यह उठता है कि नंदी के बिना भोलेनाथ अधूरे क्यों हैं?
पुराणों में प्रचलित एक कहानी के अनुसार ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने वाले शिलाद ऋषि को अपने वंश को आगे बढ़ाने की चिंता सताने लगी थी। वंश को आगे बढ़ाने के लिए शिलाद ऋषि एक पुत्र गोद लेना चाहते थे। इसी इच्छा के साथ उन्होने भगवान शिव की आराधना शुरू की।
शिलाद ऋषि के कठोर तप से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए और वरदान देते हुए कहा कि तुम्हे जल्द ही एक पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। अगले दिन ही शिलाद ऋषि को खेत में एक खूबसूरत नवजात शिशु मिला। इतने में ही उन्हें एक आवाज सुनाई दी, यही तुम्हारी संतान है, इसका अच्छी तरह से पालन-पोषण करना।
कुछ समय पश्चात जब शिलाद ऋषि को यह पता चला कि उनका पुत्र नंदी अल्पायु है, तो वे चिंतित हो उठे। लेकिन जब इस बात की जानकारी नंदी को हुई तो उन्होंने कहा कि जब उनका जन्म भगवान शिव की कृपा से हुआ है, इसलिए अब वे ही उनकी रक्षा भी करेंगे। फिर क्या था, पिता का आशीर्वाद लेकर नंदी भुवन नदी के किनारे तपस्या करने चले गए। नंदी की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी प्रकट हुए और नंदी ने वरदान के रूप में सारी उम्र के लिए भोलेनाथ का साथ मांग लिया।
नंदी ने शिव जी से निवेदन किया कि वे हर समय उनके साथ रहना चाहते हैं। नंदी की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नंदी को पहले अपने गले लगाया और बैल का चेहरा देकर उन्हें अपने वाहन, अपना दोस्त, अपने गणों में सबसे ऊंचा दर्जा देते हुए स्वीकार कर लिया।
पौराणिक कथा के मुताबिक समुद्र मंथन के समय जब विष निकला तो सृष्टि की रक्षा के लिए भगवान शिव ने इस विष को स्वयं पी लिया था। लेकिन विष की कुछ बूंदे ज़मीन पर गिर गई, जिसे नंदी ने अपने जीभ से साफ किया था। नंदी का यह समर्पण भाव देखकर शिव जी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने नंदी को अपने सबसे बड़े भक्त की उपाधि देते हुए कहा कि मेरी सभी ताकतें नंदी की भी हैं।