नक्सल वारदातों से जुड़ी कई खबरें हमें सुनने में आती है। नक्सली कहीं भी अचानक आक्रमण कर देते हैं। घने जंगलों या दूरदराज गांवों में इस खौफ की वजह से अच्छे-अच्छे जाते घबराते हैं। लेकिन हम देश की पहली महिला कोबरा कमांडो उषा किरण की बात कर रहे हैं जो यहाँ बेखौफ घूमती हैं। इन्होने अपनी पोस्टिंग भी इस इलाके में मांगी है। महज 28 साल की उम्र में उषा के पास उपलब्धियों की अच्छी-खासी फेहरिस्त है। ये सीआरपीएफ से देश की पहली महिला अफसर हैं, जो नक्सली इलाके में तैनात हैं।

गुरुग्राम की रहने वाली उषा ने साल 2013 में सीआरपीएफ की परीक्षा में देश में 295वां रैंक हासिल किया। हिम्मत इनके खानदान में हैं और इनके पिता और दादा भी सीआरपीएफ में रह चुके हैं। 25 साल की उम्र में उषा सीआरपीएफ में शामिल हो गई थी।

ट्रिपल जंप में राष्ट्रीय स्तर की विजेता उषा ने ट्रेनिंग के बाद सीनियरों से एक ही मांग की कि उन्हें किसी मुश्किल इलाके में नियुक्ति चाहिए। इसके बाद उनकी हिम्मत और जज्बे को देखते हुए छत्तीसगढ़ के बस्तर की दरभा घाटी में नियुक्ति मिली। इस इलाके को नक्सलियों का गढ़ कहा जाता है। यहाँ 25 मई 2013 को हुए हमले में कई कांग्रेसी नेताओं समेत 32 लोग मारे गए थे।

साल की शुरुआत में सीआरपीएफ के कोबरा कमांडो फोर्स में शामिल होकर उषा ने सबसे कमउम्र की पहली महिला अफसर होने का गौरव हासिल किया. कोबरा यानी कमांडो बटालियन फॉर रिजॉल्यूट एक्शन के लिए काम करना कोई आसान काम नहीं. यह सीआरपीएफ की विशेष शाखा है, जो गुरिल्ला तकनीक पर काम करती है और जिसका मकसद नक्सलियों का सफाया है।

उनकी हिम्मत, जज्बे और उपलब्धियों को देखने के बाद उन्हें 2018 में वोग वीमन ऑफ द ईयर की ओर से साल की सबसे कमउम्र अचीवर का अवार्ड मिला। वे कहती हैं कि यदि आपमें हिम्मत, हौसला और ताकत है तो दुनिया का कोई काम आपके लिए बड़ा नहीं है।

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