आपको बता दें आज के ​ही दिन यानि 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फांसी दे दी गई थी। बता दें कि 1907 में जब भगत सिंह का जन्म हुआ तब 38 वर्षीय मोहनदास करमचंद गांधी दक्षिण अफ़्रीका में अहिंसक तरीके से संघर्ष करने का प्रयोग कर रहे थे। महात्मा गांधी साल 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौटे और देखते ही देखते भारत के सियासी पटल पर छा गए।

दूसरी तरफ जवान हो रहे भगत सिंह अहिंसा नहीं क्रांति का रास्ता अपनाया। हां, लेकिन दोनों के बीच कई चीजें समान थीं, जिनमें देश के गरीबों के हितों को अहमियत देना शामिल था। गांधी और भगत सिंह दोनों ही चाहते थे कि भारत की जनता ब्रिटीश गुलामी से मुक्त हो। बता दें कि जहां गांधी जी परम आस्तिक थे, वहीं भगत सिंह नास्तिक थे। लेकिन दोनों ही धर्म के नाम पर फैलाई जाने वाली हिंसा और नफरत के विरोधी थे।

साल 1928 में साइमन कमीशन के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन करते समय वरिष्ठ नेता लाला लाजपत राय ब्रिटीश पुलिस की लाठियों से बुरी तरह से घायल हुए थे। जिसके चलते कुछ ही दिनों बाद उनका निधन हो गया। अंग्रेज़ पुलिस अधिकारियों की लाठियों से घायल हुए लाला जी की हालत देखकर भगत सिंह को बहुत गुस्सा आया। लाला लाजपत राय का बदला चुकाने के लिए भगत सिंह ने अपने क्रांतिकारी साथियों संग पुलिस सुपिरिटेंडेंट स्कॉट की हत्या करने की योजना बनाई। लेकिन एक साथी की गलती की वजह स्कॉट की जगह 21 वर्षीय पुलिस अधिकारी सांडर्स मारा गया। हांलाकि भगत सिंह इस मामले में पुलिस की गिरफ़्त में नहीं आ सके, लेकिन कुछ ही दिनों बाद उन्होंने असेंबली सभा में बम फेंका।

दरअसल असेंबली सभा में बम भगत सिंह बहरी अंग्रेज सरकार के कानों तक देश की सच्चाई की गूंज पहुंचाना चाहते थे। बम फेंकने के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने भागने के बजाय अपनी गिरफ़्तारी दे दी। गिरफ़्तारी के वक़्त भगत सिंह के पास उनकी उनकी रिवॉल्वर भी थी। कुछ समय बाद यह साबित हुआ कि पुलिस अफ़सर सांडर्स की हत्या में इसी रिवॉल्वर का इस्तेमाल किया गया था। भगत सिंह को सांडर्स की हत्या में दोषी बनाकर फांसी दे दी गई।
हांलाकि उनकी फांसी को लेकर कुछ लोग यह कहते हैं कि गांधी जी ने भगत सिंह को बचाने का प्रयास नहीं किया। जबकि महात्मा गांधी के मुताबिक, भगत सिंह को बचाने के लिए उन्होंने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी, लेकिन वह सफल नहीं हो सके।

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