किष्किंधा के राजा बालि ने श्रीराम से लिया था अपनी मौत का बदला, जानिए कैसे?
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वाल्मीकि रामायण के मुताबिक, किष्किंधा के राजा बालि की पत्नी तारा समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुई अप्सराओं में से एक थी। बालि के धर्मपिता देवराज इन्द्र थे। देवराज इंद्र से वानरराज बालि को एक स्वर्ण हार मिला था, जिसको ब्रह्मा ने मंत्रयुक्त करके यह वरदान दिया था कि इस स्वर्ण हार को पहनकर वह जब भी रणभूमि में अपने दुश्मन का सामना करेगा तो उसके दुश्मन की आधी शक्ति क्षीण हो जाएगी और वो शक्ति बालि को प्राप्त हो जाएगी। इस कारण बालि अजेय हो चुका था। बालि का एक पुत्र था जिसका नाम अंगद था। बालि गदा और मल्ल युद्ध में पारंगत था। बालि ने अपनी इसी शक्ति के बल पर दुदुंभी, मायावी और रावण को परास्त कर दिया था।
इसके अतिरिक्त राजा बालि ने अपने भाई सुग्रीव को बलपूर्वक किष्किंधा राज्य से बाहर निकाल दिया था तथा उसकी पत्नी रोमा पर अपना अधिकार जमा लिया था। श्रीरामचरिमानस के अनुसार, जब हनुमान जी ने भगवान श्रीराम से सुग्रीव को मिलवाया। तब सुग्रीव ने अपनी व्यथा श्रीराम के समक्ष व्यक्त की। इसके बाद सुग्रीव और बालि के बीच चल रहे मल्ल युद्ध के समय श्रीराम ने छुपकर बालि पर अपने शक्तिशाली तीर का प्रहार किया। चूंकि प्रभु श्रीराम ने कोई अपराध नहीं किया था लेकिन फिर भी बालि के मन में यह दुख था कि उन्होंने मुझे छुपकर मारा।
पौराणिक मान्यताओं अनुसार कृष्णावतार के समय भगवान ने उसी बालि को जरा नामक बहेलिया बनाया और अपने लिए वैसी ही मृत्यु चुनी जैसी बालि को दी थी। कथा के मुताबिक, द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण सोमनाथ के पास स्थित प्रभास क्षेत्र में अपने कुल का नाश देखकर बहुत व्यथित हो गए थे। वे तभी से वहीं रहने लगे थे। एक दिन वे एक वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहे थे तभी जरा नाम के एक बहेलिए ने उन्हें हिरण समझकर तीर मार दिया। यह तीर उनके पैरों में जाकर लगा और उन्होंने देह त्यागने का निर्णय ले लिया।
गौरतलब है कि जिस स्थान पर जरा नामक बहेलिए ने श्रीकृष्ण को तीर मारा, वो जगह आज की तारीख में भालका तीर्थ के नाम से मशहूर है। वहां बने मंदिर में वृक्ष के नीचे लेटे हुए कृष्ण की आदमकद प्रतिमा है।