नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव 2019 की रेस में क्या अभी भी सबसे आगे हैं?
देश के निर्वाचन आयोग ने लोकसभा चुनाव 2019 का बिगुल बजा दिया है। इस चुनावी रेस में शामिल होने के लिए देशभर की सभी राजनीतिक पार्टियां पूरी शिद्दत के साथ अपने-अपने योद्धओं का चयन करने में जुटी हुई हैं। हांलाकि अभी से यह कयास लगाना कि कौन सी पार्टी अथवा कौन सा नेता इस चुनावी समर में बाजी मारेगा, खतरनाक हो सकता है। बावजूद इसके कुछ ऐसे कारण हैं, जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि मौजूदा समय में पीएम मोदी ही इस रेस में सबसे आगे दिख रहे हैं।
1- नरेंद्र मोदी की छवि भारत के नेता नंबर वन के रूप में अभी भी बरकरार
नरेंद्र मोदी ने प्रत्येक चुनाव प्रचार में गजब की एनर्जी दिखाई है। पीएम मोदी अच्छे प्रवक्ता हैं, साथ ही पार्टी की छवि से उनका कद बड़ा दिखता है। बीजेपी की टैग लाइन मोदी है तो मुमकिन है ने सत्तारूढ़ सरकार और मोदी के बीच का फर्क समाप्त कर दिया है। मोदी की ध्यान से गढ़ी गई कर्म-योगी की छवि अब भी वैसी ही है जैसे पहले थी। बालाकोट में हुई एयर स्ट्राइक को इस छवि के सबसे नए उदाहरण के रूप में देखा जा रहा है।
2- कांग्रेस की स्थिति
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ चुनाव जीतने के बाद भी अभी तक कांग्रेस कोई लहर नहीं बना पाई है। जहां एक तरफ मोदी सरकार ने तेजी से आगे बढ़कर अपनी कमियों में सुधार किया है, वहीं कांग्रेस की कार्यशैली में कोई खास बदलाव नहीं आया है। मोदी सरकार तत्परता दिखाते हुए किसानों, सवर्णों और उद्योगों के लिए कई नई स्कीमें लेकर आई है। ऐसा लगता है कि तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस या तो ढीली पड़ गई है, अथवा इस नतीजे को मोदी विरोधी लहर मान लिया है।
3- राहुल गांधी की अगुवाई
इसमें कोई दो राय नहीं है कि गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में जीत हासिल करने के बाद राहुल गांधी के राजनीतिक कद में इज़ाफा हुआ है। लेकिन एक संगठन नेता के रूप में वे अभी तक उभर कर नहीं आए हैं। राहुल गांधी का चुनावी कैंपेन रफाल और चौकीदार चोर है, के इर्द-गिर्द ही घूम रहा है। ये दोनों ही मुद्दे देश की जनता को किसानों और बेरोजगारी के मुद्दों से भटका रहे हैं।
4- यूपी अब भी भाजपा का ही चुनाव है
विपक्ष ने प्रियंका गांधी की सियासी एंट्री और सपा-बसपा गठबंधन पर खुशी जाहिर की थी। लेकिन सच्चाई यह है कि जरीब 21 वर्षों बाद एक राजनीतिक मंच पर उतरी सपा-बसपा के बीच की केमिस्ट्री ठीक नहीं है। प्रियंका की एंट्री भी पॉलिटिकल बॉक्स ऑफिस पर अभी तक कुछ कमाल नहीं दिखा सकी है।
दूसरी तरफ बीजेपी ने यूपी में बहुत फिल्डिंग की है। गरीबों के लिए चलाई गई स्कीमें सभी जातियों को अपनी ओर समेट रही हैं। अगर भाजपा 2014 में जीतीं 73 सीटों की आधी भी जीत लेती है, तो किसी अन्य सरकार का आना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
5- पुलवामा, पाकिस्तान, बालाकोट एयर स्ट्राइक
पुलावामा में हुए आतंकी हमले के बाद वैश्विक राजनीति के स्तर पर पाकिस्तान को बुरी तरह से घेरना, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और इजरायल का खुला समर्थन प्राप्त करना तथा बालाकोट में इंडियन एयरफोर्स की एयर स्ट्राइक, इन सभी मुद्दों का असर शहरी इलाकों और हिंदी बोलने वाले क्षेत्रों में आसानी से देखा जा सकता है।
6- अमित शाह की इलेक्शन-इंजीनियरिंग
अमित शाह बीजेपी के लिए एक ऐसे सेनापति की तरह काम करते हैं, जो साम, दाम, दंड, भेद, सभी कुछ के लिए तैयार रहते हैं। उनके लिए तरीके से ज्यादा जीत मायने रखती है। यूपी में विपक्ष के मुकाबले शिवपाल यादव सहित छोटे-छोटे गुटों को तैयार करना, शिवसेना को दोबारा अपने साथ मिला लेना ये सटीक उदाहरण हैं। बीजेपी के पास संघ परिवार की वजह से बूथ लेवल तक कार्यकर्ताओं का एक मजबूत संगठन भी है।