भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को जिला लायलपुर (अब पाकिस्तान में) के गांव बावली में हुआ था। भगत सिंह को जब ये समझ में आने लगा कि उनकी आजादी घर की चारदीवारी तक ही सीमित है तो उन्हें बहुत दुख हुआ। भगत सिंह बार-बार कहा करते थे कि अंग्रजों से आजादी पाने के लिए हमें मांगने की जगह रण करना होगा।

आपको जानकारी के लिए बता दें कि शहीद-ए-आजम भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई थी। आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि फांसी का दिन 24 मार्च 1931 तय किया गया था, लेकिन इन तीनों को एक दिन पहले ही फांसी दे दी गई थी। अब आप यह सोच रहे होंगे कि ऐसा क्यों किया गया था?

8 अप्रैल 1929 को दिल्ली की असेंबली में ब्रिटिश सरकार द्वारा पेश किए गए ट्रेड डिस्प्यूट बिल और पब्लिक सेफ़्टी बिल पर बहस चल रही है। इस दौरान भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली के उस हिस्से में बम फेंका जहां कोई नहीं बैठा हुआ था। असेंबली में बम फेंकने के बाद ये दोनों क्रांतिकारी भागे नहीं बल्कि इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए खुद को गिरफ़्तार करवाया। इसके बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर असेंबली में बम फेंकने का केस चला।

वहीं साल 1928 में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने लाहैार में एक ब्रिटिश जूनियर पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इन तीनों पर ब्रिटीश सरकार ने सांडर्स को मारने के अलावा देशद्रोह का केस चलाया था। इस मामले में तीनों को दोषी माना गया। असेंबली में बम फेंकने के लिए बटुकेश्वर दत्त को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। जबकि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी देने का फैसला सुनाया गया। बता दें कि इन तीनों को फांसी देने की तारीख 24 मार्च 1931 का दिन तय किया गया था।

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा पूरे देश में आग की तरह फैल गई। इसके बाद पूरे देश में फांसी को लेकर जिस तरह से विरोध-प्रदर्शन जारी था, उससे ब्रिटीश सरकार डरी हुई थी। लिहाजा निश्चित तारीख से एक दिन पहले ही भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई थी।

गौरतलब है कि भगत सिंह और उनके दोनों सा​थियों सुखदेव और राजगुरु को 23 मार्च 1931 को शाम करीब 7 बजकर 33 मिनट पर फांसी दे दी गई थी।

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