दोस्तों, आपको बता दें कि कुंभ स्नान में नागा साधुओं का हुजूम देखते ही बनता है। इनके स्नान के लिए विशेष समय निर्धारित होता है। नागा साधु शरीर पर राख लपेटे हुए तथा बिल्कुल नंगे होते हैं। वह अपने इसी स्वरूप में मस्त होते हैं। आइए जानें, नागा साधुओं से जुड़ी कुछ अनोखी बातें।

- नागा साधु पूरी तरह से नग्न अवस्था में रहते हैं। यह खुद को ईश्वर का देवदूत मानते हैं, और उनकी उपासना में लीन रहते हैं। इन्हें कपड़ों से कोई मतलब नहीं होता है।

- नागा साधु अपने समुदाय को ही अपना परिवार मानते हैं, इनके लिए सांसारिक मोह-माया कोई मायने नहीं रखता है।

- नागा साधुओं का कोई विशेष स्थान अथवा घर नहीं होता है। यह लोग कुटिया बनाकर जीवन व्यतीत करते हैं।

- इनके लिए दैनिक भोजन को कोई महत्व नहीं होता है। यह तीर्थयात्रियों द्वारा दिए जाने वाले भोजन को ही ग्रहण करते हैं।

- नागा साधु कहते हैं कि कपड़े तो तन ढ़कने का काम करते हैं जिन्‍हे तन की सुरक्षा करनी हो, वही इसे पहनें। हम तो नागा हैं, हमारे लिए कपड़ों का कोई महत्‍व नहीं होता।

- नागा साधुओं के विचार दृढ़ होते हैं। यह हर समय ध्यान में लीन रहते हैं। इनको मौसम आदि से कोई फर्क नहीं पड़ता है।

- नागा साधुओं का उल्लेख वेद व्यास ने वनवासी संन्यासी के रूप में की है। इसके बाद शुकदेव आदि ऋषि-महर्षियों ने इस परंपरा को नया आयाम दिया। शंकराचार्य ने चार मठ स्थापित कर दसनामी संप्रदाय का गठन किया। इसके बाद अखाड़ों की परंपरा शुरू हुई।

- नागा साधु सबसे पहले ह्मचारी बनने की शिक्षा प्राप्त करते हैं। इस कठिन परीक्षा से गुजरते हुए उन्हें महापुरूष की दीक्षा दी जाती है। इसके बाद यज्ञोपवीत और पिंडदान होता है, जिसे बिजवान कहा जाता है।

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