प्रभु या भगवान की परिक्रमा करना कई धर्मों में चलन में है। माना जाता है कि इस से उसके पाप नष्ट हो जाते हैं। लेकिन आपने गौर किया हो तो सभी देवी देवता और मंदिरों की पूरी परिक्रमा की जाती है, वहीं शिवलिंग की आधी परिक्रमा होती है। शिव जी की पूजा एक मूर्ति और शिवलिंग दोनों रूप में की जाती है लेकिन शिवलिंग पूजा के नियम अलग हैं, जिसमें कुछ मर्यादाएं भी निहित हैं। शिवलिंग की आधी परिक्रमा ही की जाती है। इसे चंद्राकार परिक्रमा कहा जाता है। परिक्रमा के दौरान जलाधारी को लांघना मना होता है। इसके पीछे के कारण के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं।

शिव-शक्ति की सम्मिलित ऊर्जा का प्रतीक है शिवलिंग
शिवलिंग की परिक्रमा आधी करने के पीछे धार्मिक कारण है कि शिवलिंग को शिव और शक्ति दोनों की सम्मिलित ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। शिवलिंग को पवित्र माना जाता है और इस पर जल भी अर्पित किया जाता है। ये जल जिस मार्ग से निकलता है, उसे निर्मली, सोमसूत्र और जलाधारी कहा जाता है।

इसलिए नहीं लांघी जाती है जलाधारी
माना जाता है कि शिवलिंग इतना अधिक शक्तिशाली है कि उस से निकलने वाले जल में भी शिव और शक्ति की ऊर्जा के कुछ अंश मिल जाते हैं। ऐसे में जल को कोई लांघे तो उस व्यक्ति के पैरों के बीच से ये ऊर्जा उसके शरीर में प्रवेश कर जाती है। इसकी वजह से व्यक्ति को वीर्य या रज संबन्धित शारीरिक परेशानियों का सामना भी करना पड़ सकता है। इसके अलावा जलधारी को लांघना पाप माना गया है।

वैज्ञानिक वजह भी समझें
वैज्ञानिक कारणों के अनुसार शिवलिंग ऊर्जा का भंडार होता है और इनके आसपास के क्षेत्रों में रेडियो एक्टिव तत्वों के अंश भी पाए जाते हैं। काशी के भूजल में यूरेनियम के अंश भी मिले हैं। रेडियो एक्टिविटी मैप देखें तो पता चलेगा कि इन शिवलिंगों के आसपास के क्षेत्रों में रेडिएशन पाया जाता है। . ऐसे में शिवलिंग पर चढ़े जल में इतनी ज्यादाऊर्जा होती है कि इसे लांघने से व्यक्ति को बहुत नुकसान हो सकता है।


शिवलिंग की परिक्रमा के दौरान भक्त उनकी जलाधारी तक जाकर वापर लौट जाते हैं इसीलिए इस परिक्रमा को चंद्राकार परिक्रमा कहा जाता है।

ऐसे में लांघ सकते हैं जलाधारी
कहीं-कहीं पर शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल सीधा भूमि में जाता है या यहाँ पर जलाधारी ढकी हुई होती है। ऐसी स्थिति में शिवलिंग की पूरी परिक्रमा की जा सकती है।

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