सनातन संस्कृति में विवाह को एक पवित्र संस्कार माना गया है। इसमें कई रस्में होती हैं जिनका वर-वधु को पालन करना होता है। ऐसी ही एक रस्म है - वरमाला। यह वर-वधु द्वारा एक दूसरे को जीवनसाथी के रूप में स्वीकार करने का प्रतीक मानी जाती है।

सनातन संस्कृति में विवाह को एक पवित्र संस्कार माना गया है। इसमें कई रस्में होती हैं जिनका वर-वधु को पालन करना होता है। ऐसी ही एक रस्म है - वरमाला। यह वर-वधु द्वारा एक दूसरे को जीवनसाथी के रूप में स्वीकार करने का प्रतीक मानी जाती है।

वरमाला पहनाने की रस्म कितनी पुरानी है, इसका कोई स्पष्ट उत्तर नहीं है। प्राचीन ग्रंथों में वरमाला पहनाने के अनेक प्रसंग आते हैं। इससे सिद्ध होता है कि ये रस्म बहुत पुरानी है।

जब सीताजी का स्वयंवर हुआ तो उस प्रसंग में इस बात का उल्लेख आता है कि जो कोई धनुष तोड़ देगा, उसी के गले में वरमाला डाली जाएगी। इस तरह वरमाला का संबंध मूलतः वर को स्वीकार करने एवं महिला अधिकारों से है।महाभारत में भी स्वयंवर का जिक्र आता है। जब अर्जुन ने धनुष उठाकर स्वयंवर की शर्त पूरी कर दी तो द्रोपदी ने उनके गले में वरमाला डाली।

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