आपने किसी बच्चे के जन्म, किसी की शादी ब्याह, त्यौहार आदि में किन्नरों को जाते देखा होगा। किन्नर हर शुभ काम में शामिल होते है। ये नाच गा कर पैसा कमाते हैं और इसी से अपना जीवनयापन करते हैं। लेकिन किन्नरों का समाज एकदम अलग होता है और इनके अपने अलग रीती रिवाज और नियम होते हैं।

किन्नरों का अंतिम संस्कार भी दिन की बजाय रात में किया जाता है। जहाँ एक ओर हमारे समाज में दिन ढलने के बाद अंतिम संस्कार नहीं होता है वहीं किन्नरों का अंतिम संकर रात में किया जाता है। लेकिन ऐसा क्यों है? इसी बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं।

किन्नरों के बारे में माना जाता है कि उनको अपनी मौत का आभास हो जाता है। यहा तक के किन्नर अपनी मौत से कुछ दिन पहले खाना-पीना बंद कर देते है। इतना ही नहीं इस दौरान वह कही भी जाना पसंद नहीं करते हैं। किन्नर मरते हुए अपने लिए और बाक़ी किन्नरों के लिए यही दुआ करते है कि अगले जन्म में वह किन्नर ना पैदा हो।

इनकी अंतिम संस्कार हमसे बहुत अलग है। किन्नरों का अंतिम संस्कार रात में किया जाता है। क्योकिं किन्नरों का ऐसा मानना है कि अगर कोई बाहरी मरने वाले को देख ले तो मरने वाला फिर अगले जन्म में किन्नर ही पैदा होता है। इसलिए किन्नर का शव आधी रात के समय होता है निकलता है।

किन्नर के अंतिम संस्कार करने से पहले मरने वाले किन्नर को खूब गालिया दी जाती है और इतना ही नहीं उसे जूते चप्पल से मारा जाता है। यह इसलिए किया जाता है ताके मरने वाले ने अगर कोई अपराध किया हो तो उसका प्रायश्चित यही हो जाए। इसके अलावा उसे इसलिए भी मारा जाता है कि वह अगले जन्म में एक इंसान के रूप में ही जन्म ले।

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