पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्यवंशी कुल में एक राजा अंबरीश थे उन्होंने द्वादशी व्रत का पालन किया। उनके समर्पण को देख विष्णु उनसे काफी प्रसन्न हुए और उन्हें सुदर्शन चक्र का नियंत्रण प्रदान किया। एक बार राजा के दरबार में दुर्वासा ऋषि आए। राजा ने उनका स्वागत किया और उनके सत्कार में कोई कमी नहीं छोड़ी।

राजा ने उन्हें प्रसाद खाने के लिए कहा लेकिन दुर्वासा ऋषि ने कहा कि वे पहल यमुना नदी में स्नान करेंगे उसी के बाद कुछ ग्रहण करेंगे। राजा दुर्वासा ऋषि के आने का इंतजार करने लगे। काफी समय बीत गया लेकिन दुर्वासा ऋषि लौट कर नहीं आए। तब सभी धर्मगुरुओं ने अंबरीश को प्रसाद ग्रहण करने का अनुरोध किया तब सबकी बात मान कर अंबरीश ने प्रसाद ग्रहण कर लिया।

प्रसाद ग्रहण करने के कुछ समय बाद ही वहाँ दुर्वासा आ पहुंचे और जब उन्हें पता लगा कि राजा अंबरीश ने उनकी अनुपस्थिति में ही प्रसाद ग्रहण कर लिया है तो दुर्वासा ने राजा अंबरीश को मारने के लिए कृत्या नामक राक्षसी को प्रकट किया। स्वयं की रक्षाहेतु राजा अंबरीश ने सुदर्शन चक्र का उपयोग किया और राक्षसी का अंत हो गया। इसके बाद सुदर्शन चक्र दुर्वासा को मारने करने के लिए आगे बढ़ा।

व्याकुल होकर दुर्वासा भोलेनाथ के पास पहुंचे लेकिन भोलेनाथ ने उन्हें श्री हरि विष्णु के पास जाने को कहा। तब उन्होंने विष्णु से सुदर्शन चक्र से खुद की जान बचाने के लिए अनुरोध किया। इस पर विष्णु ने कहा कि इसमें तुम्हारी ही गलती है और मेरे भक्त ने आत्मरक्षा के लिए ही सुदर्शन चक्र का उपयोग किया है। आपको जाकर अंबरीश से अनुरोध करने चाहिए, यदि वे क्षमा कर देते हैं ठीक है वरना मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता। दुर्वासा ने राजा अंबरीश से अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी, जिसके बाद उन्होंने सुदर्शन पुनः वापस ले लिया।

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