हिंदू धर्म में हर वर्ष महिलाएं शीतला सप्तमी या अष्टमी व्रत पर सुबह स्नान कर शीतला माता की पूजा करती हैं। श्रद्धालु महिलाएं इस व्रत के एक दिन पहले मीठा भात, पकौड़ी, चूरमा, बेसन चक्की, मीठा भात, रबड़ी, पूड़़ी-सब्जी, रबड़ी, बाजरे की रोटी और पुए आदि पकवान तैयार करती हैं। रात में सभी व्यंजन बनाने के बाद रसोईघर की साफ सफाई करके अगले दिन सुबह शीतला माता की पूजा की जाती है।

इसके बाद रात के बने बासी और ठंडे पकवानों का भोग शीतला सप्तमी या अष्टमी पर शीतला माता को चढ़ाया जाता है। इसके बाद घर के सभी लोग केवल ठंडा खाना ही खाते हैं। शीतला माता की पूजा-अर्चना करने के बाद चूल्हा नहीं जलाया जाता है।
हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि शीतला सप्तमी या अष्टमी की पूजा करने से श्रद्धालुजनों को शीतला माता सुखी-समृद्ध बनाने के बाद प्राकृतिक विपदाओं से दूर रखती हैं।

ऐसा माना जाता है कि शीतला माता की पूजा करने से चेचक, खसरा आदि रोगों का प्रकोप नहीं फैलता है। हिंदू धर्मग्रंथों के मुताबिक, शीतला माता को ठंडे पकवान अतिप्रिय हैं। इसलिए उनकी पूजा-अर्चना करते समय घर में ताजा भोजन नहीं बनाया जाता। यही वजह है कि शीतला माता को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धालुजन ठंडे व्यंजनों का भोग लगाते हैं।

मान्यता है कि शीतला अष्टमी और सप्तमी का व्रत करने से परिवार में दाह ज्वर, नेत्रों से जुड़े सभी रोग, पीत ज्वर, दुर्गन्धयुक्त फोड़े आदि जैसे रोग नहीं होते हैं।
जानिए कब है शीतला सप्तमी या अष्टमी व्रत? इस साल 2019 में 27 और 28 मार्च को शीतला सप्तमी या अष्टमी का व्रत है। देश के अधिकांश हिस्सों में शीतला सप्तमी अथवा अष्टमी का व्रत किया जाता है। बता दें कि उत्तर भारत में शीतला सप्तमी या अष्टमी का यह व्रत बसौड़ा के नाम से भी जाना जाता है।

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