आपने ये जरूर सोचा होगा कि जब माउंट एवरेस्ट आदि काफी ऊँचे होते हैं तो लोग इन पर चढ़ाई करने की मेहनत क्यों करते हैं? आखिर वे प्लेन से ही ऊपर क्यों नहीं पहुंच जाते? 14 मई 2005 को फ्रांस के टेस्ट हेलीकॉप्टर पायलट डिडिएर डेलसला ऐसी कोशिश की थी। उसके बाद किसी ने ये कोशिश नहीं की क्योंकि उन्हें पता है कि उनके हाथ कामयाबी नहीं लगेगी। फ्रेंच पायलट डिडिएर डेलसला ने कोशिश की और हेलीकॉप्ट उतार पाए तो इसके पीछे कई साल की ट्रेनिंग और उड़ान का रियाज शामिल है।

एक्सपर्ट बताते हैं कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर विमान उड़ाने का साहस कोई नहीं कर सकता है। यहाँ पर तूफानी हवाएं हमेशा चलती हैं और तापमान इतना कम होता है कि शरीर को गला दे। इसके अंजाम बेहद ही भयावह हो सकते हैं।

क्या है वजह
माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 29,031.69 फीट है। ऐसे में विमान आसानी से माउंट एवरेस्ट तक उड़ सकते हैं लें यहाँ का रूट इतना खतरनाक है, मौसम में इतनी तेजी से बदलाव होता है, कि जान भी जा सकती है।

प्लेन क्रैश होगा अंतिम विकल्प
हिमालयी क्षेत्र में ज्यादातर चोटियां 25,000 फीट से ऊंची हैं। इसलिए पायलट के पास बेहद ही कुशलता होनी चाहिए। इंजन खराब हो जाए तो विमान नीचे आएगा और हो सकता है कि वह L888 रूट से बाहर हो जाए।

एयरक्राफ्ट में 20 मिनट का ऑक्सीजन होता है। अगर प्लेन का केबिन प्रेशर नीचे चला जाए तो विमान को उस ऊंचाई पर ले जाना पड़ेगा जहां सांस लेने लायक ऑक्सीजन मिल सके।

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