कौन था सबसे पहला कांवड़ियां, कांवड़ यात्रा से जुड़ी ये ज़रूरी बातें शायद ही जानते होंगे आप
इंटरनेट डेस्क। हिन्दू धर्म का पवित्र सावन का महीना शुरू हो चुका है जो कि भगवान भोलेनाथ को समर्पित। इस महीने में आप आप हर जगह कांवड़ियों को बम बम भोले का जयकारा लगाते हुए सुन सकते है। कांवड़ यात्रा गंगा नदी या अन्य किसी पवित्र जल स्रोत का जल लाने के लिए शिव भक्तों की तीर्थ यात्रा है जिसे बाद में मंदिरों में शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है। सावन के महीने में यह नजारा बहुत बार देखा जा सकता है।
कांवड़ यात्रा का संबंध भगवान शिव और परशुराम से है। सम्पूर्ण पृथ्वी पर विजय पाने के बाद परशुराम 'पुरा' (वर्तमान में मेरठ) नामक एक जगह से गुज़र रहे थे और वहां पर आराम करने रुके थे। वह इस जगह पर भगवान शिव का एक मंदिर बनाना चाहते थे, इसलिए मंदिर बनाने के लिए पत्थर और गंगा नदी का पवित्र पानी लाने के लिए वे हरिद्वार गये थे। ऐसा कहा जाता है कि तभी से कावड़ यात्रा शुरू हुई थी और यह परम्परा अब तक चली आ रही है।
कांवड़ यात्रा का उद्देश्य केवल भगवान शिव को प्रसन्न करना ही नहीं है बल्कि इस से आपके जीवन में भी कई सुधार आते है। कांवड़ यात्रा के दौरान कुछ चीज़ों को करने से मना किया जाता है जिनके बारे में आप शायद जानते होंगे।
कांवड़ यात्रा के दौरान आपको हर हालत में शराब और मांसाहार का सेवन करने से बचना चाहिए।
आपको सुबह स्नान किये बिना कांवड़ को नहीं छूना चाहिए। इसके अलावा कांवड़ यात्रा के दौरान कंघी, तेल, साबुन और फैशन से संबंधित अन्य चीज़ों का उपयोग करने से भी मना किया जाता है।
कांवड़ यात्रा के दौरान वाहनों का प्रयोग करने से मना किया जाता है। कांवड़ियों को यात्रा के दौरान चमड़े की चीज़ों को छूने और कांवड़ को किसी पेड़ के नीचे रखने से बचना चाहिए।
कांवड़ियों के लिये यात्रा के दौरान 'बम भोले' और 'जय शिव शंकर' का जयकारा लगाना जरुरी होता है।