सामूहिक निवेश योजनाओं को अक्सर निवेश फंड, म्यूचुअल फंड या बस फंड के रूप में जाना जाता है। कई ऐसी कंपनियां हैं, जो सामूहिक निवेश योजनाएं चलाकर निवेशकों से पैसा लेती हैं और फंड लेकर गायब हो जाती हैं. मगर अब SEBI द्वारा CIS चलाने वाली कंपनियों पर लगाम लगाने की तैयारी की जा रही है. अब सेबी की सीआईएस कंपनियों पर कड़ी नजर होगी। एक समय ऐसा भी था जब बागान, पशुपालन और चेन मार्केटिंग के नाम पर भी बहुत अच्छे रिटर्न का वादा करने वाली कंपनियां अपनी योजना को सफल बनाने के बाद लोगों को ठग कर गायब हो जाती थीं.

कंपनियों के नामों में जेवीजी ग्रुप, शारदा ग्रुप ऑफ कंपनीज, गोल्डन फॉरेस्ट ग्रुप शामिल हैं। मगर ये सिर्फ एक दौर की बात नहीं है, आज भी कई ऐसी सीआईएस कंपनियां हैं, जो ज्यादा ब्याज देने के नाम पर निवेशकों को अरबों का चूना लगा रही हैं.

सेबी ने ऐसी सीआईएस कंपनियों पर लगाम लगाने की तैयारी शुरू कर दी है।सेबी ने एक डिस्कशन पेपर भी जारी किया है और 31 जनवरी तक राय मांगी गई है। पहली बार होगा जब इस सेक्टर पर नियम लागू किए जाएंगे। सामूहिक निवेश योजना कंपनियां वे कंपनियां हैं जिन्हें सेबी के तहत ही मंजूरी मिलती है। लेकिन सेबी निवेश पर रिटर्न की कोई जिम्मेदारी नहीं लेता है, सेबी का इससे कोई लेना-देना नहीं है कि किसे कितना और कितना कम निवेश मिलेगा। कंपनियां निवेशकों को मुनाफे का आश्वासन देती हैं और उनसे पैसा भी वसूल करती हैं। इतना ही नहीं ये कंपनियां निवेशकों को पोस्ट डेटेड चेक भी देती हैं। वे रिटर्न देने के नाम पर फरार हैं।

खबरों से प्राप्त जानकारी के अनुसार बताया जा रहा है कि, सीआईएस कंपनियां चलाने के नियमों में बदलाव का प्रस्ताव किया गया है. जिसके तहत सीआईएस को चलाने के लिए आवश्यक शुद्ध संपत्ति को 50 करोड़ रुपये बनाने का प्रस्ताव किया गया है और ऐसी योजनाओं को चलाने के लिए 20 निवेशकों के साथ 20 करोड़ तक सदस्यता बनाने का भी प्रस्ताव है।

जिसके तहत सिर्फ वही सीआईएस कंपनियां रजिस्ट्रेशन करा सकेंगी, जिनके पास 5 साल का अनुभव हो। जिसकेअलावा किसी भी कंपनी की किसी अन्य CIS कंपनी पर 10 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी नहीं हो सकती है।

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