हमारे जीवन में वास्तुशास्त्र को बहुत महत्व दिया गया है क्योंकि वास्तुशास्त्र में हमारे जीवन में काम आने वाली हर छोटी-छोटी चीज के लिए कई तरह के नियम और उपाय बताए गए हैं। शास्त्रों में बताए गए इन नियम और उपायों को अपनाकर हम हमारे जीवन में आने वाली हर छोटी से छोटी समस्या से राहत पा सकते हैं। हमारे सनातन धर्म में पूजा पाठ को काफी महत्व दिया गया है क्योंकि इसकी वजह से मालूम है एनर्जी का संचार होता है और पूजा करने के लिए मंदिर बनाए जाते हैं। लेकिन वर्तमान समय में मंदिरों में जाने के लिए समय की कमी होने के कारण लोग अपने घरों में ही मंदिर बनवाने लगे हैं और पूजा पाठ करने लगे हैं। घरों में मंदिर में मूर्ति स्थापना के लिए सही दिशा का ध्यान रखना बहुत जरूरी है लेकिन गलत दिशा में मूर्ति स्थापित करने से आपको फायदे की जगह नुकसान होने लगते हैं और पूजा करने का भी समय नहीं मिल पाता है आइए इस लेख के माध्यम से आपको बताते हैं घर के मंदिर में स्थापित करने के लिए सही दिशा कौन सी होती है। आइए जानते है विस्तार से -


* भगवान के मुख के लिए उत्तम दिशा :

वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में मंदिर बनाते समय मूर्ति स्थापित करते समय भगवान के मुख्य की दिशा का खास ध्यान रखना चाहिए और हमेशा वास्तु के अनुसार भगवान का मुख पूर्व दिशा में ही होना चाहिए क्योंकि पूर्व दिशा को सकारात्मक ऊर्जा की दिशा माना जाता है और इसी दिशा से सुबह के समय भगवान भास्कर का भी उदय होता है।


* पूजा पाठ करने वाले भक्तों के लिए उत्तम दिशा :

वास्तु शास्त्र के अनुसार पूजा करने वाले भक्तों का मुख हमेशा उत्तर दिशा की तरफ ही होना चाहिए. पूजा पाठ करते समय कभी भी भगवान के ठीक सामने नहीं बैठना चाहिए क्योंकि ऐसा माना जाता है कि भगवान की मूर्ति मैं मौजूद ताप को इंसान सहन नहीं कर सकते।


* पूजा पाठ के समय इस बात का रखें ध्यान :

वास्तुशास्त्र में बताया गया है कि जिस तरह भगवान राम के चरणों के किनारों पर हनुमान जी बैठे थे उसी तरह आपको भी बगल में बैठकर भगवान की पूजा अर्चना करनी चाहिए। घर में मंदिर बनवा के समय हमेशा वास्तुशास्त्र ओं का ध्यान रखना चाहिए क्योंकि उनका ध्यान रखने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का संचार नहीं होता है और घर में सुख शांति बनी रहती है।

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