आज तक अपने हजारों प्यार - मोहब्बत की कहानियां सुनी होंगी। इसके साथ ही शायद ही कोई ऐसा इंसान होगा जिसने अपनी उम्र में किसी से प्यार नहीं किया होगा। ये वो खूबसूरत इत्तेफाक है जिससे शायद ही कोई इंसान अछूता रहा हो। जीवन के रंगमंच पर बहुत से ऐसे कलाकार है, जो अपने प्यार का इजहार कर पाते है। लेकिन कुछ कलाकार ऐसे भी रहें है जिन्होंने बिना इजहार-ए-मोहब्बत को अंजाम दिए अपनी प्रेम कहानी को अपनी प्रेमिका तक ही नहीं पूरी दुनिया में लोगों के दिल तक पहुंचा कर मिलास कायम कर थी। ऐसी ही एक कहानी आज हम आपको बताने जा रहें है। ये कहानी है साहिर लुधियानवी और अमृता प्रीतम की।

इनकी कहानी शोहरत की पतंग बनकर प्यार की मिसाल की डोर में बंधी गयी। अधूरी मोहब्बत का ये वो मुकम्मल अफसाना था, जिसकी दूसरी कहीं कोई मिसाल नहीं मिलती।
अमृता प्रीतम साहिर लुधियानवी से बेपनाह मोहब्बत करती थी। उनकी साहिर से पहली मुलाकात साल 1944 में हुई थी। वह एक मुशायरे में शिरकत कर रही थी और वो साहिर से भी यही मिली। वहां से लौटने पर बारिश हो रही थी। अपनी और साहिर की इस मुलाकात को अमृता कुछ इस कदर बयां किया है। हालांकि अमृता ससुराल में रहने के कारण साहिर से कम ही मिल पाती थी, लेकिन जब भी दोनों मिलते तो ज्यादा बातें नहीं करते थे। ऐसा लगता था जैसे खामोशी का ही एक हिस्सा अमृता की बगल वाली कुर्सी पर बैठा है और फिर अचानक उठकर चला गया हो।


जब तक दोनों की मोहब्बत परवान चढ़ती तब तक देश का बंटावारा हो गया था। साहिर लाहौर में ही रह गए और अमृता पति के साथ दिल्ली चली गयी थी। लेकिन दो मोहब्बत करने वालों के बीच की इस दूरी को खतों ने दूर कर दी थी।
अमृता के खतों को पढ़ें तो मालूम होता है कि वो साहिर के इश्क में दीवानी हो चुकी थी। अमृता, साहिर को मेरा शायर, मेरा महबूब, मेरा खुदा और मेरा देवता कहकर पुकारती थी। वहीं अमृता भी साहिर के जहन में बसती, जिसे लेकर न जाने उन्होंने कितनी नज्में, शेर और गजलें लिखी। लेकिन यह दोनों कभी एक - दूसरे को जहनी तौर पर अपनाने के लिए तैयार नहीं हो पाए दोनों। साहिर ने कभी शादी नहीं की पूरी उम्र वो आशिक इंतजार में ही रह गया। वहीं अमृता पति के साथ रह तो रही थी लेकिन सिर्फ कहने के लिए। ये एक सच्ची कहानी है।

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