Travel tips: देश के इन कुछ मंदिरों पर भक्तों को मिलता है नॉन वेजिटेरियन प्रसाद
भारत देश में अलग अलग जगहों पर अपनी अलग ही परंपरा चलाने जाने का प्रचलन शुरू से ही चला आ रहा है। देश के हर एक कोने में अलग अलग परम्पराएं देखने को मिल जाती हैं। रहन-सहन, खानपान के अलावा भी कई ऐसी चीजें हैं जिनमें विविधता देखने को मिलती हैं। ऐसी ही विविधता यहां के मंदिरों में भी देखने को मिलती हैं। आज हम आपको देश के कुछ ऐसे मंदिरों के बारे में बताने जा रहे है जहाँ जहां प्रसाद में भक्तों को मटन-चिकन दिया जाता है।
कालीघाट, कोलकाता- कालीघाट कोलकाता की कुछ अलग मान्यताएं हैं, देवी के लिए बनाया जाने वाला भोग शाकाहारी ही होता है। लेकिन यहां पशु बलि होती है, और भक्त भी वहां वही लाते हैं। मांस को बाद में इसे पकाया जाता है और भक्तों को प्रसाद के रूप में परोसा जाता है।
दक्षिणेश्वर काली मंदिर, पश्चिम बंगाल- इस मंदिर में भी मछली को पहले देवी काली को चढ़ाया जाता है और बाद में सभी भक्तों को भोग के रूप में परोसा जाता है। यह मां काली को मांसाहारी भोग लगाने की एक रस्म मानी जाती है।
कामाख्या देवी मंदिर, असम- असम के गुवाहाटी में स्थित कामाख्या देवी का मंदिर देश के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। ये मंदिर तंत्र विद्या के लिए भी जाना जाता है। मंदिर में देवी को मछली और मीट का भोग लगाया जाता है।
मुनियांडी स्वामी मंदिर, मदुरै- वडक्कमपट्टी तमिलनाडु के मदुरै जिले के पास एक छोटा सा गांव है। यह गांव अपने वार्षिक मंदिर उत्सव में एक दावत का आयोजन करता है जहां 2000 किलो बिरयानी पकाई जाती है और प्रसाद के रूप में उसे परोसा जाता है। स्थानीय निवासियों का मानना है कि ये खाना मुनियांडी भगवन का पसंदीदा खाना है।
तरकुलहा देवी मंदिर, उत्तर प्रदेश- तारकुल्हा देवी मंदिर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थित है। इस मंदिर में हर साल वार्षिक खिचड़ी मेला आयोजित किया जाता है। जिसमें भक्तों की भीड़ उमड़ती है। माना जाता है। यहां पर आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूरी होती है। खासतौर से, चैत्र नवरात्रि में देश भर से लोग इस मंदिर के दर्शन करने आते हैं। इस खास समय पर वह लोग देवी को एक बकरा चढ़ाते हैं। जिनकी मनोकामना पूरी हो जाती है। इसके बाद इस मांस को रसोइयों द्वारा मिट्टी के बर्तनों में पकाया जाता है। भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।