आज राष्ट्रीय हथकरघा दिवस है। यह हर साल 7 अगस्त को मनाया जाता है। आप सभी को पता होगा कि भरतपुर (सीधी) के हथकरघा और हस्तशिल्प समिति की पहचान आज देश तक ही नहीं बल्कि विदेशों तक भी सीमित है। हां, कई सालों से यहां सैकड़ों महिलाएं और पुरुष हैं जो अपने हाथों की कारीगरी दिखा रहे हैं। वह इसके जरिए अपना जीवन बिता रहा है। आप सभी को पता ही होगा कि इस समय की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने अपने बुने हुए कपड़ों की तारीफ की है। आपको बता दें कि इस समिति में 150 प्रशिक्षित महिला और पुरुष बुनकर हैं और यहां साल भर का कारोबार वर्ष 2018-19 में 49 लाख रुपये के करीब रहा है।

इसके अलावा, वर्ष 2019-20 में भी लगभग तीस लाख रुपये तक का नुकसान बताया जा रहा है। हालांकि, वर्ष 2005 में अपनी स्थापना के बाद से, यह समिति लगातार अपने नाम पर नए नाम बना रही है। वहीं, भारत के हर कोने में यहां कपड़े बेचे जा रहे हैं। आपको बता दें कि इन कपड़ों की रंगाई बहुत अच्छी होती है और इस वजह से ये कई सालों तक चमकदार बने रहते हैं। यहां के एक बुनकर का कहना है कि उनके हाथ के बने कपड़ों की इतनी मांग थी कि वह दिन-रात यहां काम करते थे। पूरे साल हस्तनिर्मित कुर्ता, पायजामा, शर्ट, रूमाल, गर्म केक, कालीन की मांग थी। लेकिन इस साल यह समिति आर्थिक रूप से संघर्ष कर रही है। कोरोना काल में काम बंद होने से आर्थिक समस्या गहरा गई।

इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा कि, 'यहां समिति के बैंक की क्रेडिट सीमा भी पार कर ली गई है। बुनकरों को ट्राइफेड से नियमित कच्चे माल की आपूर्ति नहीं हो रही है, जिससे बुनकर चिंतित हैं। कोरोना अवधि के दौरान बुनकरों ने तीन महीने तक मुखौटे बनाकर अपनी आजीविका चलायी। हालांकि, लॉकडाउन की छूट के बाद, काम धीरे-धीरे पटरी पर लौट रहा है। आपको यह भी बता दें कि समिति के सदस्यों ने मध्य प्रदेश के सीधी, रीवा, भोपाल सहित दिल्ली, उत्तर प्रदेश के आगरा, कानपुर और पटना सहित बिहार और सभी राज्यों की राजधानी में आयोजित हथकरघा मेले में अपने स्टॉल लगाए। वैसे, वर्ष 2007 में, उनके कपड़ों को अमेरिका भी कहा जाता था, जो बहुत गर्व की बात है।

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