हिंदू धर्मशास्त्रों में वर्णित है कि त्रिकाल संध्या के समय धरती पर सभी देवी-देवताओं का वास होता है। सूर्योदय से साढ़े 13 मिनट पहले, मध्यकाल में साढ़े 13 मिनट पहले अथवा बाद में एवं शाम को सूर्यास्त के साढ़े 13 मिनट पहले और बाद का समय त्रिकाल संध्या कहा जाता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शाम के समय मां लक्ष्मी विशेष रूप से धरती पर आती हैं। शाम के समय वह उत्तर और उत्तर पश्चिम दिशा की ओर सक्रिय रहती हैं, ऐसे में इस समय अपने घर के दरवाजे और खिड़कियां खुली रखनी चाहिए।

घर में मां लक्ष्मी के निवास के लिए पंचतत्वों से उनका पूजन करना चाहिए। अग्नि यानी दीपक, आकाश यानि फूलों से, वायु यानि धूप-बत्ती, जल यानि तिलक से तथा पृथ्वी यानि नेवैद्य से मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

मां लक्ष्मी को चंचला कहा गया है, इसलिए घर में उनका आना-जाना लगा रहता है। पूजा के समय मां लक्ष्मी के आरती उतारे हुए जल का पूरे घर में छिड़काव करना चाहिए। मां लक्ष्मी की पूजा सुबह-शाम पारिवारिक सदस्यों को एक साथ करनी चाहिए। पूजा करते समय यह ध्यान रखें कि उस समय कोई भी भोजन नहीं करे। इससे घर में अशुद्धता फैलती है और मां लक्ष्मी नाराज हो जाती हैं।

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