सिर पर चोटी रखने के पीछे है यह वैज्ञानिक मान्यता, जरूर पढ़ें यह रोचक खबर
दोस्तों, हिंदू धर्म में सिर पर चोटी रखने की परंपरा प्राचीनकाल से ही चली आ रही है। बता दें कि ब्राह्मणों के लिए चोटी रखना अनिवार्य होता था और यह उनकी पहचान भी होती थी। यद्यपि आज की तारीख में भी कुछ वेदपाठी ब्राह्मण सिर पर चोटी जरूर रखते हैं। हांलाकि आधुनिक समाज में यह परंपरा अब धीरे-धीरे खत्म हो रही है।
दोस्तों, आपको जानकारी के लिए बता दें कि सिर पर चोटी रखने को लेकर देश के कुछ लोगों की मान्यता रूढ़िवादी है, लेकिन चोटी के महत्व को लेकर अब वैज्ञानिक भी स्वीकार करते हैं।
मस्तिष्क के ताप को नियंत्रित करती है चोटी
सिर पर चोटी रखने के स्थान के सीधे नीचे सुषुम्ना नाड़ी होती है, जो कपाल तंत्र की अपेक्षा संवदेनशील होती है। इसलिए इस जगह के खुले होने के कारण वातावरण से ऊष्मा और अन्य विद्युत-चुंबकीय तरंगें बड़ी ही आसानी से मस्तिष्क के साथ इंटरेक्शन कर सकती हैं। यह गतिविधिया मस्तिष्क के ताप को बढ़ाती हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार, मस्तिष्क के ताप को नियंत्रित करना बहुत जरूरी होता है इसलिए इस स्थान का ढका होना जरूरी है। अत: सिर पर शिखा (चोटी) रखकर आसानी से ताप को नियंत्रित किया जा सकता है।
बौद्धिक क्षमता का केंद्र
सिर पर चोटी रखने से यहां चक्र जाग्रत होता है, जिससे बुद्धि और मन भी नियंत्रित रहते हैं। इस प्रकार सिर के जिस भाग पर चोटी रखी जाती है, वह स्थान बौद्धिक क्षमता, बुद्धिमता और शरीर के विभिन्न अंगों को नियंत्रित करता है।
सही लंबाई की हो चोटी
शिखा का दबाव होने से रक्त का प्रवाह ठीक रहता है, इसका सीधा लाभ मस्तिष्क को प्राप्त होता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, जिस जगह पर चुटिया रखी जाती है, उस जगह पर दिमाग की सारी नसें आकर मिलती हैं। हमारे ऋषियों ने सोच-समझकर चोटी रखने की प्रथा को शुरू किया था। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, सहस्रार चक्र का आकार गाय के खुर के समान होता है इसीलिए चोटी का आकार भी गाय के खुर के बराबर ही रखा जाता है।