सनातन धर्म के ‘अखाड़ों’ से अलग अखाड़ों की एक दुनिया और भी है, जिसे किन्नर अखाड़े का नाम मिला है। जहाँ तक बात करें अखाड़ों के किन्नरों की तो ये सनातन धर्म का पालन करते हैं और महाकाल के उपासक हैं लेकिन कुछ संत अघोर साधना भी करते हैं। इस साधना को हर कोई नहीं कर सकता है और यह काफी खतरनाक और घातक होती है। यह साधना आधी रात को होती है। समाज से दूर रहे किन्नर भी अब मुख्य धारा से जुड़ने लगे हैं।

कुंभ में पहली बार 15 जनवरी को 14 अखाड़ों ने शाही स्नान में हिस्सा लिया। इस से पहले 2016 में केवल 13 अखाड़ों ने शाही स्नान किया था। प्रयाग में चौदहवां अखाड़ा किन्नर अखाड़ा बना। किन्नर पहली बार मुख्य धरा में आए हैं हालांकि अखाड़ा परिषद ने अब भी किन्नर अखाड़े को 14वें अखाड़े के रूप में मान्यता नहीं दी है।

10 नरमुंडों के साथ की पूजा:
किन्नरों के इस अखाड़े के भगवान महाकाल है। ये लोग बहुचरा माता की पूजा भी की जाती है। यह कोई सामान्य पूजा नहीं है बल्कि ये बेहद कठिन है। आधी रात को उत्तर क्षेत्र की महामंडलेश्वर भवानी नाथ ने ऐसी अघोर साधना की, जिसमें कई किन्नर संत शामिल हुए। भवानी ने दस नरमुंडों के साथ श्मशान काली की पूजा की। यह अघोर पूजा है जिसे कई लोग देखना भी नहीं चाहेंगे।

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