जैसा की हम लोग जानते है और पढ़ते सुनते आये है कि दशरथ के चार पुत्र थे और पूरी रामायण इनके इर्द गिर्द ही घूमती है। लेकिन ये सच नहीं है क्योकि महाराज दशरथ के चार पुत्रों के साथ एक पुत्री भी हुई थी। इस पुत्री का नाम शांता था। शांता की माता कौशल्या थी। शांता का जन्म चारों भाइयों के जन्म लेने से बहुत पहले हुआ था।

कहते है एक बार अंग देश के राजा और रानी अयोध्या में राजा दशरथ के पास आये। अंगराज के पास किसी भी सुख की कमी नहीं थी बस उनके जीवन में एक ही शोक था। वो निसंतान थे,जब दशरथ को इस बारे में पता चला तो दशरथ और कौशल्या ने अपनी पुत्री को अंगराज और उनकी पत्नी को गोद दे दिया। इस प्रकार शान्ता अंगराज की पुत्री हो गयी।

एक समय जब अंगराज अपनी पुत्री के साथ खेलने में व्यस्त थे उसी समय एक ब्राह्मण किसान उनसे सहायता मांगने आया। बेटी के साथ खेलते हुए अंगराज का ध्यान किसान की पुकार पर नहीं गया। किसान दुखी होकर वहां से चला गया। किसान के दुःख को देखकर इंद्र को रोष हुआ और इंद्र ने अंग राज्य में वर्षा कम की जिससे राज्य के लोग बेहाल हो गए।

इंद्र को प्रसन्न करने के लिए अंगराज ने श्रृंगऋषि को इंद्र को प्रसन्न करने का उपाय पुछा। श्रृंगऋषि ने इंद्र को प्रसन्न करने के लिए यग्य और अनुष्ठान किया। श्रृंगऋषि के यज्ञ से इंद्र प्रसन्न हुए और अंगदेश में अकाल समाप्त हुआ। अंगराज ने अपनी गोद ली गयी पुत्री शांता का विवाह श्रृंगऋषि के साथ कर दिया। कालांतर में श्रृंगऋषि ने ही महाराज दशरथ के लिए पुत्र प्राप्ति अनुष्ठान किया था।

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