इतिहास के पन्नों में आज का दिन बेहद खास है आज ही के दिन राष्ट्रिय ध्वज तिरंगे को ख़ास पहचान मिली। इस दिन 21 जुलाई 1947 को तिरंगे को देश के राष्ट्रिय ध्वज के रूप में स्वीकारा गया था। लेकिन तिरंगे का डिजाइन हमेशा से ऐसा नहीं था बल्कि इसके डिजाइन में कई बार बदलाव किए जा चुके हैं।

पहला राष्‍ट्रीय ध्‍वज 7 अगस्‍त 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता में फहराया गया जिसे हम अब कोलकाता के नाम से जानते हैं। इस झंडे में लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियां थी और कमल के फूल और चांद-सूरज भी बने थे।

दूसरा झंडा 1907 में पेरिस में मैडम कामा और उनके साथ कुछ क्रांतिकारियों ने फहराया था। यह पहले के झंडे की तरह था लेकिन इसमें ऊपर वाली पट्टी पर केवल एक कमल था और सात तारे सप्‍तऋषि को दर्शाते हैं।

1917 में तीसरा ध्‍वज डॉ. एनी बीसेंट और लोकमान्‍य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया था। इसका डिजाइन थोड़ा अलग था और इसमें 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियां थी। इसमें सप्‍तऋषि के अभिविन्‍यास में इस पर बने सात सितारे थे। इस झंडे में बांई और ऊपरी किनारे पर (खंभे की ओर) यूनियन जैक था। वही इसके कोने पर अर्धचंद्र और सितारा भी था।

चौथा ध्वज अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के के सेशन के दौरान एक युवक ने बनाया और महात्मा गांधी को दिया। यह कार्यक्रम साल 1921 में बेजवाड़ा में हुआ था। ये वाला ध्वज दो रंगों का बना था। इसमें लाल और हरा रंग थे जो हिन्दू और मुस्लिम दो समुदाय का प्रतिनिधित्व करता था। गांधी जी ने कहा था कि शेष समुदायों के प्रतिनिधित्व के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और चरखा होना चाहिए।

पांचवा झंडा साल 1931 में आया। इस तिरंगे ध्‍वज को हमारे राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव भी जारी किया गया था।

आखिरकार, 21 जुलाई 1947 को तिरंगे को भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाया गया। झंडे में रखे के स्‍थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को दिखाया गया।

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