सावन मास में हरियाजी तीज का हिन्दू धर्म में बड़ा महत्व है। सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और अपने अखंड सौभाग्य के लिए हरियाली तीज का व्रत रखती हैं। हिन्दी पंचांग के अनुसार, हर वर्ष सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज मनाने की परंपरा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस तिथि को ही माता पार्वती और भगवान शिव को दोबारा मिलन हुआ था। इस वजह से शादी योग्य युवतियां भी इस व्रत को रखती हैं, ताकि उनको भी माता पार्वती के तरह ही मनोवांछित वर मिले।


हरियाली तीज की पूजा में भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की मूर्तियां बनाने के लिए काली मिट्टी चाहिए। उसके बाद पूजा के लिए पीला वस्त्र, केले का पत्ता, बेलपत्र, धतूरा, भांग, शमी पत्र, जनेऊ, कच्चा सूत, नए वस्त्र आदि। कपड़ा और जनेऊ एक जोड़ी भगवान शिव और गणेश जी के लिए चाहिए। माता पार्वती के लिए एक हरी साड़ी, सुहाग का सामान जैसे सिंदूर, बिंदी, बिछुआ, मेहंदी, चूडियां, महौर, खोल, कुमकुम, कंघी, इत्र, 16 श्रृंगार के सामान आदि। इसके अतिरिक्त कलश, अक्षत्, दूर्वा, अबीर, श्रीफल, चंदन, तेल, घी, कपूर, गाय का दूध, गंगाजल, दही, चीनी, शहद और पंचामृत।


शिव, पार्वती और गणेश जी कीली मिट्टी से मूर्ति बनाते हैं और फिर उनको वस्त्र पहनाते हैं। माता पार्वती को सोलह श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करते हैं। इन तीनों को एक चौकी पर स्थापित करते हैं और विधिपूर्वक पूजन करते हैं।

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