शुक्राचार्य ने लिखी है जीवन से जुड़ी यह जरूरी बातें, सफलता आपके कदम चूमेगी
दोस्तों, आपको बता दें कि देवताओं के गुरु बृहस्पति हैं। जबकि दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य हैं। दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने शुक्र नीति नामक ग्रंथ की रचना भी की थी। शुक्राचार्य की नीतियों की बदौलत ही देवताओं के समक्ष दैत्यों ने त्राहि-त्राहि मचा रखी थी। मान्यता है कि शुक्राचार्य एक बेहतरीन मैनेजमेंट गुरु थे। बता दें कि शुक्राचार्य ने अपने ग्रंथ में जो भी बातें लिखी हैं, वह आज भी प्रासंगिक हैं।
- दीर्घदर्शी सदा च स्यात्, चिरकारी भवेन्न हि।
अर्थात कल की सोचें, लेकिन कल पर न टालें।
दोस्तों मनुष्य को अपना हर काम आज के साथ कल को भी ध्यान में रखकर करना चाहिए। लेकिन आज का काम कभी कल पर नहीं टालना चाहिए। दूरदर्शी बने लेकिन दीर्घसूत्री नहीं।
- यो हि मित्रमविज्ञाय याथातथ्येन मन्दधीः। मित्रार्थो योजयत्येनं तस्य सोर्थोवसीदति।।
अर्थात बिना सोचे-समझे किसी को भी मित्र नहीं बनाएं।
बता दें कि किसी भी इंसान को अपना मित्र बनाने से पहले उसके गुण-अवगुण पर विचार करें। बिना सोचे-समझे किसी से भी मित्रता करना नुकसानदायक हो सकता है।
नात्यन्तं विश्र्वसेत् कच्चिद् विश्र्वस्तमपि सर्वदा।
अर्थात किसी पर भी हद से ज्यादा विश्वास नहीं करें
शुक्रचार्य ने कहा है कि किसी पर भी भरोसा करने की कोई सीमा होनी चाहिए। आंखें मूंदकर विश्वास करना घातक हो सकता है। जो विश्वास करने लायक हो, उस पर विश्वास करें लेकिन अपनी आंखें हमेशा खुली रखें।
अन्नं न निन्घात्।।
अर्थात कभी भी अन्न का अपमान नहीं करें।
धर्म ग्रंथों में अन्न का अपमान करना पाप माना गया है। कई लोग मनपसंद खाना नहीं बनने पर अन्न का अपमान करते हैं, यह गलत बात है। दुष्परिणाम में कई तरह के दुखों का सामना भी करना पड़ सकता है।
धर्मनीतिपरो राजा चिरं कीर्ति स चाश्नुते।
अर्थात धर्म ही मनुष्य को सम्मान दिलाता है।
हर मनुष्य को जीवन में धर्म तथा धर्मग्रंथों का सम्मान करना चाहिए। धर्म का सम्मान करने वाले मनुष्य को समाज और परिवार में बहुत सम्मान मिलता है। अपनी दिनचर्या का थोड़ा सा समय देव पूजा में भी लगाना चाहिए।