ये हम सभी ने देखा है कि गणेश जी चूहे पर सवार होते हैं और उनकी सवारी चूहा है लेकिन क्या आप जानते हैं कि गणेश जी की सवारी मूषक क्यों होती है? इसी बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं।

एक प्रचलित कथा के अनुसार आधी देवीय और आधी राक्षस वाला एक व्यक्ति क्रौंच था। एक बार भगवान इन्द्र ने अपनी एक सभा में सभी मुनियों को बुलाया और इस दौरान उन्होंने क्रौंच को भी आमंत्रित किया। इस समय क्रौंच का एक पैर मुनि के पैर पर रख गया। इस बात से गुस्सा हो कर मुनि ने क्रौंच को चूहा बनने का श्राप दिया। क्रौंच ने श्रमा भी मांगी लेकिन मुनि ने अपना श्राप वापस नहीं लिया।

उस श्राप को वे वापस नहीं ले सकते थे लेकिन उन्होंने क्रौंच को एक वरदान दिया कि वे भगवान शिव के पुत्र श्री गणेश जी की सवारी बनेंगे। क्रौंच एक विशाल चूहा था जो मिनटों में पहाड़ों को कुतर डालता था।

अब वह राक्षस प्रवृति के कारण आतंक मचाने लगा और सब को परेशान करने लगा। क्रौंच ने ऋषि पराशर की कुटिया भी तहस-नहस कर डाली थी। सभी ऋषियों ने उसे भगाने का प्रयास किया लेकिन उन सभी के प्रयास विफल रहे। तब वे शिवजी के पास गए और उन्हें सारी व्यथा सुनाई।

तब गणेश जी ने चूहे को पकड़ने के लिए एक फंदा फेंका। इस फंदे ने चूहे का पाताल लोक तक पीछा किया और पकड़ लिया और गणेश जी के सामने ले आया। गणेश जी ने उस से इस तबाही मचाने का कारण पूछा। गणेश जी ने आगे चूहे से बोला कि अब तुम मेरे आश्रय में हो इसलिए जो चाहो वो मांग लो लेकिन महर्षि पराशर को परेशान न करो।

इस पर घमंडी चूहे ने कहा कि मुझे कुछ नहीं चाहिए लेकिन आप मुझसे कुछ मांगना चाहे तो मांग सकते हैं। इस घमंड को देखकर गणेश जी ने चूहे से कहा कि वो उसकी सवारी करना चाहते हैं। इस बात के लिए चूहा तैयार हो गया लेकिन उनके भारी भरकम शरीर के कारण वह ठीक से चल भी नहीं पाया। चूहे ने बहुत कोशिश की लेकिन गणेशजी को लेकर एक कदम भी आगे न बढ़ सका।

चूहे का घमंड चूर-चूर हो गया और उसने गणेशजी से बोला गणपति बाप्पा मुझे क्षमा कर दें। मैं आपसे क्षमा मांगना चाहता हूँ। मैं अपने वजन के नीचे दबा जा रहा हूँ। मेरु याचना को स्वीकार कर गणेश जी ने अपना भार काम किया और इस तरह ये मूषक गणेश जी की सवारी बना।

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