हिंदू धर्मग्रंथों में महिष्मति साम्राज्य का वर्णन मिलता है। इस महिष्मति साम्राज्य के राजा का नाम सहस्त्रबाहु था। उसका असली नाम कार्तवीर्य अर्जुन था। कार्तवीर्य अर्जुन के राज्य का विस्तार नर्मदा नदी से हिमालय तक था, जिसमें यमुना तट का प्रदेश भी सम्मिलित था।

रामायण में यह वर्णन मिलता है कि लंका के राजा रावण को सहस्त्रबाहु ने युद्ध में करारी शिकस्त दी थी। इस स्टोरी में हम आपको महिष्मति साम्राज्य के राजा सहस्त्रबाहु और रावण के बीच हुए युद्ध की रोचक कथा बताने जा रहे हैं।

महिष्मति के बाहुबली राजा कार्तवीर्य अर्जुन को अपने गुरु दत्तात्रेय हजार भुजाओं का वरदान मिला था। इन्हीं हजार भुजाओं के चलते वह सहस्त्रबाहु भी कहा जाता था। कहा जाता है कि लंका का ताकतवर राजा रावण विश्व विजय पर निकला हुआ था। वह अन्य राज्यों पर विजय प्राप्त करता हुआ मालवा क्षेत्र के महिष्मति साम्राज्य तक जा पहुंचा। वह मालवा में नर्मदा नदी के तट पर शिवलिंग रखकर अपनी विजय के लिए भोलेनाथ की पूजा करने लगा।

उन दिनों महिष्मति में सहस्त्रबाहु का राज था। रावण की पूजा के दौरान वह भी नर्मदा किनारे अपनी रानियों के साथ स्नान करने पहुंचा हुआ था। तब सहस्त्रबाहु से उनकी रानियों ने कहा कि हमें आपका बाहुबल देखने की लालसा हो रही है। फिर क्या था, देखते ही देखते सहस्त्रबाहु ने अपनी हजार भुजाओं से नर्मदा का प्रलय प्रवाह रोक दिया। ऐसा देख रावण अत्यंत क्रोधित हुआ और उसने अपनी सेना को सहस्त्रबाहु से युद्ध करने के लिए भेज दिया।

सहस्त्रबाहु ने पहले रावण को अतिथि कहकर वापस जाने के लिए कह दिया, लेकिन विश्वविजय के नशे में उन्मत रावण ने आक्रमण कर दिया। इस युद्ध मेें राजा सहस्त्रबाहु ने रावण को अपनी भुजाओं में कैद कर लिया तथा करीब 6 महीने तक आजाद ही नहीं किया।

इसके बाद रावण के दादा महर्षि पुलस्त्य ने माफ़ी मांगकर रावण को सहस्त्रबाहु की कैद से मुक्त करा लिया। वर्तमान में महेश्वर में नर्मदा किनारे एक अति प्राचीन शिवलिंग आज भी मौजूद है, मान्यता है कि यह वहीं शिवलिंग है जिसके सामने रावण ने महादेव की पूजा-अर्चना की थी।

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