मोक्षदायिनी नगरी काशी का मणिकर्णिका श्मशान घाट पूरे देश में मशहूर है। यहाँ पर दिन भर चिताएं जलती रहती है। आपको बता दें कि साल में एक दिन पूरी रात मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के साथ साथ देशभर से आई तवायफों के घुंघरूओं की आवाज सुनाई देती है।

लेकिन इन श्मशान घाट पर तवायफों को जबरन अथवा पैसे देकर नहीं बुलाया जाता है तो फिर आखिर ऐसी क्या वजह होती है जिस से ये तवायफें बिना किसी पैसे के श्मशान घाट पर रात भर महफील जमाती है। दरअसल यह तवायफें यहां जीते जी मोक्ष प्राप्त करने के लिए आती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस श्मशान घाट पर यह तवायफें रातभर नाचेंगी तो उन्हें अगले जन्म इस कलंक से मुक्ति मिल जाएगी।

ये एक परंपरा है जो कि 350 साल पुरानी है। चैत्र नवरात्रि अष्टमी की रात श्मशान घाट पर तवायफें पूरी रात नाचती-गाती हैं। जहाँ तक इस परंपरा की शुरुआत की बात करें तो ये राजा मान सिंह के दरबार से शुरू हुई है। एक बार राजा ने अपने दरबार के नर्तकियों और कलाकारों को नृत्य के लिए बुलवाया था, ये राज दरबार मंदिर और शमसान के बीच पड़ता था। इसलिए कई कलाकारों ने ऐसा करने से मना कर दिया था।

चूंकि राजा ने ऐलान करवा दिया था तो प्रश्न यह था कि श्मशान के बीच में नाच और संगीत किससे करवाया जाए। तब किसी ने तवायफों को बुलाने का सुझाव् दिया। इसके बाद राजा मान सिंह ने उन्हें यह न्यौता भेज दिया। जिसे तवायफों ने स्वीकार कर लिया और महाश्मशान के बीच नृत्य करने पहुंच गईं। तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है। चैत्र नवरात्र की अष्टमी को कलकत्ता, दिल्ली, मुंबई आदि जगहों से तवायफें मोक्ष प्राप्ति के लिए यहां आती हैं।

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