Pregnancy Tips: जानें क्या होता है 'OCD', मां बनने वाली हर 5वीं महिला होती है इसकी शिकार
मां बनने का अहसास खूबसूरत होता है। मगर इसके साथ ही नई जिम्मेदारी भी शुरू होती है। इसकी चिंता कभी-कभी इतनी बढ़ जाती है कि कुछ माओं को ओसीडी (ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर) घेर लेता है। इसे मनोग्रसित बाध्यता विकार कहा जाता है। एक हालिया अध्ययन की मानें तो मां बनने वाली प्रत्येक पांचवीं महिला इस विकार से ग्रस्त होती है। दरअसल नई मां बनने वाली महिलाएं बच्चे को किसी तरह के नुकसान की चिंता में इसकी शिकार हो सकती हैं। एक हालिया अध्ययन में यह पाया गया है। शोधकर्ताओं ने सौ महिलाओं पर अध्ययन के आधार पर पाया कि जन्म देने के बाद 38 सप्ताह में 17 प्रतिशत महिलाओं में ओसीडी देखा गया।
यह होते हैं लक्षण
नई माओं में ओसीडी के लक्षणों में बच्चों को किसी तरह के नुकसान की आशंका शामिल होती है। उनमें डर वाले विचार अत्यधिक घेर लेते हैं। उन्हें डर होता है कि बच्चे को संक्रमण न हो। परिणामस्वरूप वह बार-बार बच्चों की बोतल और कपड़े धोती हैं। अध्ययन में पाया गया है कि नई माओं में से करीब आठ प्रतिशत महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान कभी न कभी ओसीडी के लक्षण देखे गए। इसके अलावा पोस्टपार्टम भी मूड स्विंग, चिंता, अनिंद्रा आदि से जुड़ा होता है। इसे ‘बेबी ब्लूज’ के रूप में जाना जाता है। मगर शोधकर्ताओं ने चेतावनी देते हुए कहा है कि इनके अलावा महिलाओं में बच्चे के जन्म से पहले और गर्भावस्था के दौरान ओसीडी एक अन्य विकार है, लेकिन इसके बारे में कम जानकारी है।
रिश्तों पर हो सकता है असर
अगर इसका उपचार न किया जाए, यह पैरेंटिंग, रिश्ते और रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित कर सकता है। अध्ययन से पता चलता है कि ओसीडी सभी प्रसवकालीन महिलाओं को प्रभावित कर सकता है। यह गर्भावस्था (प्रसवपूर्व) के दौरान और बच्चे के जन्म के बाद (प्रसवोत्तर) दोनों रूप से प्रभावित करता है। अध्ययनकर्ताओं ने स्वास्थ्य पेशेवरों को ओसीडी के अन्य लक्षणों का पता लगाने के लिए कहा है, जो अक्सर अनिर्धारित हो सकते हैं। प्रमुख शोधकर्ता एवं कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय के डॉ निकोल फेयरब्रथर ने कहा कि हमने प्रसवकालीन विशिष्ट प्रश्नों और मूल्यांकन विधियों के साथ प्रसवोत्तर महिलाओं के बीच ओसीडी का मूल्यांकन किया। विशेषरूप से हमने शिशु से संबंधित नुकसान के विचारों के बारे में प्रश्न शामिल किए। निष्कर्षों से पता चला है कि ओसीडी से पीड़ित महिलाओं की अनदेखी न हो और उन्हें सही उपचार की सलाह दी जा सके।
निगरानी की जरूरत
अद्ययन के आंकड़ों से पता चला कि कुछ महिलाओं में ओसीडी सामान्य तौर पर खुद-ब-खुद ठीक हो जाता है। वह जैसे-जैसे पेरैंटिंग को लेकर अभ्यस्त होती हैं, उनका यह विकार धीरे-धीरे ठीक होने लगता है। मगर कुछ में यह गंभीर हो जाता है और उन्हें उपचार की जरूरत होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि महिलाओं को खास देखभाल की जरूरत होती है। उन पर इस जटिल वक्त में निगरानी रखना जरूरी है, क्योंकि अधिकांश महिलाएं इन लक्षणों की जानकारी नहीं देती हैं।